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________________ ६२ He, who is not prepared to adopt the order of saints should be persuaded to enter the life of a virtu ous hu ase holder, who practises partical renunciation' and gradually prepares himself for the higher orders. प्रथम भव्यों को समस्त विरति रूप मोक्ष का प्रधान कारणीभूत महात्रतरुप मुनि धर्म का उपदेश देना चाहिये और ग्रहण करने के लिये प्रोत्साहन देना चाहिये । यदि वह भव्य इस महान व्रतों को धारण करने के लिये असमर्थ होगा तब एक देशविरति रूप गृहस्थ धर्म का उपदेश देना चाहिये । यदि मुनि धर्म का उपदेश न देकर मुनि धर्म को स्वीकार करने रूप उत्साह नहीं देकर केवल गृहस्थ धर्म का उपदेश देंगे तब वह मुनि प्रायश्चित का भागी है। क्योंकि गृहस्थ धर्म में सम्पूर्ण विषय कपाय परिग्रह से विरति नही है। सम्पूर्ण पाप कर्मों से विरति नहीं है निराकुलता रूप धर्म शुक्ल रूप आत्मध्यान भी नहीं होता है, उससे भव्य का आत्म उन्नति में बाधक होता है । " अष्टमूल पुत्रः महु मज्ज मंस विरई चाओ पुण उंबरान पंचहं । अरे मूलगुणाहवंति फुड देसविरवम्मि ।। ३५६ ।। ( भाव-संग्रह ) मध्यमांत मनु एवं पंच उदुम्बरों को त्याग करना देश विरतियों के भुल गुण है । मलमधु निशाशन पंचफली विरति पंचकाप्सनुतो । नौदयाज गलनमिति च क्वचिदप्यमूलगुणा ।। १८ ।। ( आशाचरत सागार धर्मामृत ) मद्य त्याग २ | मांस त्याग ३) मनु त्याग ४) रात्रि भोजन त्याग ५) पंच उदुम्बर फलों का त्याग ६) त्रैकाल्य पंचपरमेष्ठी भगवान की वंदना ७ ) जीव दया ८) पानी छानकर पीना। इस प्रकार प्रकारान्तर ८ मूलगुण है । जो श्रावक उपरोक्त मूलगुणों को पालन नहीं करता वह श्रावक ही नहीं है। श्रावकों के लिये मद्य, मांस, मधु, पंचउम्वर पल सप्त व्यसन, रात्री भोजन, उनछना पानी पीना आदि त्याग करना. ہ
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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