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थौ मत्तामर महामण्डल पूजा
कवित्वहीनो मतिशास्त्रहीनो,
भक्त्यैकया प्रेरितसोमसेनः ॥४८॥ है प्रभु तेरे गुणोद्यान की, क्यारी से चुन दिव्य-ललाम । गूंथी विविध वर्ण सुमनों की, गुण-माला सुन्दर अभिराम ।। घद्धासहित भविकजन जो भी, कण्ठाभरण बनाते हैं। मानतुन-सम निश्चित सुन्दर, मोक्ष-लक्ष्मी पाते हैं ।।४८।।
(अद्धि ) ॐ हीं अहं णमो मनसाहू ।
। मंत्र ) ॐ ह्री अर्ह नमो भगवते महर्तिमहावीरवद्रमाणबद्धिरिसीणं। ॐ ह्रां ही ह नौ हहः अ मि आ 3 सा झी झों स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धासहित ४६ दिन तक १०८ बार ऋद्धि-मंत्र अपने मनोवांछित समस्त कामों को सिद्धि होती है ।।४६||
अर्थ-जैसे पुष्पमाला पारण करने से मनुष्य को शोभा ( लक्ष्मी) प्राप्त होती है उसी प्रकार इस स्तोत्ररूपी माला के पहिनने । सदा पाठ करने से मनुष्य को परम्परा से भोभ-लक्ष्मी प्राप्त होती है ॥४॥ ॐ ह्रीं सकलकायंसाधनसामर्थाय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय
श्रीवृषभजिनेन्द्राय अध्यम् ।।४८|| ___The Goddess of wealth of her own accord resorts to that man of high self-respect in this world, who alwe Place round his neck, o Jinendra. this garland of orisons, weich has been stumg by me with 111c strings of The excellences out of devotion, and which looks charming on account of the multi-coloured flowers in the shape of beautiful words. 48.