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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
- - - - . .. - भुजंग (सर्प) भय भंजक कोण समद-कोकिल-कण्ठ-नीलं,
क्रोधोद्धतं फरिगनमुत्फरएमापतन्तम् । प्राकामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्क
स्त्वन्नाम-नागदभनी हृदि यस्य पुंसः ॥४१।। क्रोधेन युक्तः फणिराजसर्पः,
क्रोधं परित्यज्य प्रलापवान्सः । करोति दूरं वरदेवनाम्ना,
नानाविधप्राणनिधानदानात् ॥४१॥ कंठ कोकिला सा अति काला,क्रोधित हो फरण किया विशाल । लाल-लाल लोचन करके यदि, झपटै नाग महा विकराल !! नाम-रूप तव अहि-दमनी का, लिया जिन्होंने हो अाश्रय । पग रख कर निशक नाग पर, गमन करें वे नर निर्भय ॥४१॥
(ऋद्धि) ॐ ह्रीं महँ णमो नीरसवीणं ।
। मंत्र ॐ नमो श्रां श्री श्रृं श्रओं अ: जलदेवि कमले कमले पद्महनिवासिनि पद्मोपरिमंस्थिते सिद्धि देहि मनोवांछितं कुरु कुरु स्वाहा ।
(विधि ) श्रद्धासहित ऋद्धि मंत्र जपने और झाड़ने से सर्ष का विष उतर जाता है । ॥४१॥
पर्य--हे सातिश्य नाम वाले देव ! भापके पापविमोचक, पुण्यगर्दक शुभनामरूपी नागदमनी (जड़ी बूटी) को भक्तिसहित गारपदापूर्वक प्रन्तःकरण में धारण करने वाले मानव उस भयंकर उस फुकार करते हुए जहरीले नाग को भी निर्भग होकर रोंपते हुए चले पाते हैं। कि जिसके नेत्र पषकते हुए गारे जो सरह मारपत वर्ण हो