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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
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मोक्ष-स्वर्ग के माम प्रदर्शक, प्रभवर नेरे दिव्य-वचन । फरा रहे हैं 'सत्य-धर्म' के, अमर-तत्त्व का दिग्दशन ।। मुनकर जग के जीव वस्तुतः, कर लेते अपना उद्धार । इस प्रकार परियतित होते, निज-निज भाषा के अनुसार ॥३५।।
। ऋद्धि) ॐ ह्रीं अहं णमो जल्लोसहिगत्ताणं ।
( मंत्र ) ॐ नभी जयविजयापराजितमहालक्ष्मी: अमृतवर्षिगी : अमृतवाविण अमृतं भव भव वषट सुधाय स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धासहित ऋद्धिमंघ की अराधना से चोरी, मारी, मगो, दुभिक्ष, गजभय प्रादि नष्ट हो जाते हैं ॥३५॥
अर्ष-हे दिव्यध्वनिपते ! पापको विध्यध्वनि स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग बतलाती है, सब जीवों को धर्मतस्थ (हित) का उपदेश देतो है । और समस्त श्रोताओं की भाषाओं में बदल जाती है। अर्गात जो प्रारणी जिस भाषा का जानकार होता है, अापकी विष्म ध्वनि उसके कान के राम पहुँचकर उसी भाषाम्प हो जाती है। (यह विध्यध्वनि प्रतिहार्य का वर्णन है) ॥३५॥ ॐ ह्रीं जलधरापटलगजितसर्वभाषात्मकयोजनप्रमाणदिव्यम्वनि
प्रातितहार्याय क्लीमहावीजाक्षरसहिताम
श्रीवृषभजिनेन्द्राय मध्य॑म् ।।३५|| Thy divine voice, which is sought by those who wish to tread the path of emancipation leading to Heaven and Salvation and wbich alone can expound the truth of the supreme celigion, is endowed with those natural qualities which transform it (Divya-dhwani) into all the languages capable of clear meaning. 35.