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परिशिष्टाध्यायः
का दर्शन करें। इस प्रकार स्वप्न का देखना ही मंत्र कहलाता है। "ॐ ह्रीं नाः छः पः लक्ष्मी नवीं कुरु कुरु स्वाहा " इम मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए ।।। 47 ||
सर्वागेषु यदा तस्य लीयते मक्षिकागणः । षण्मासं जीवितं तस्य कथितं ज्ञानदृष्टिभिः ॥1480
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जिस व्यक्ति के समस्त शरीर पर अकारण ही अधिक विषय दमनी हों आयु ज्ञानियों ने छह महीने बतलायी है। यहां से प्रत्यक्ष का वर्णन
उसको
आचार्य करते हैं । 148
दिग्भागं हरितं पश्येत् पीतरूपेण शुभ्रकम् । गन्धं किञ्चिन्न यो वेत्ति मृत्युस्तस्य विनिश्चितम् ||| 49 || जिसको अकारण ही दही में दिलासी महें
तथा गन्ध का ज्ञान भी जिसे न ही उसकी मृत्यु निश्चित है ।।। 49 ||
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शशिसूय गतौ यस्य सुखरात्यो
मरणं तस्य निर्दिष्टं शीघ्रतोऽरिष्टनेदिभिः 111500
जिसे सूर्य और चन्द्रमा दिखलायी न पड़े तथा जिसके मुख से व्यास अधिक और तेजी से निकलता हो उसका शीघ्र मरण विद्वानों ने कहा है ।1501
जिह्वा मलं न मुञ्चति न वेत्ति रसना रसम् ।
निरीक्षते न रूपञ्च सप्तदिनं स जीवति ॥15॥॥
जिसकी जिल्ला पर सर्वदा अधिक रहता हो तथा जिसे किसी भी सका स्वाद न आता हो और न वस्तुओं के रूप को देख पाता ही उसकी बावु यात दिन की होती है । 151
वह्निचन्द्र न पश्येच्च शुभ्रं वदति कृष्णकम् । तुङ्गच्छायां न जानाति मृत्युस्तस्य समागतः 1115211 वस्तु प्रवेत जिरो अग्नि और चन्द्रमा दिखलायी पड़ने हों और कामी पड़ती हो. उन्नत छाया परिज्ञात न हो उसको आगल रहती है ।। 52 मन्त्रित्वा स्वमुखं रोगी जानुदध्ने जते स्थितः ।
मालूम
न पश्येत् स्वमुखच्छायां षण्मासं तस्य जीवितम् ॥15॥
जो रोगी मंत्रित होकर बुटने गयंत जल में खड़ा हो अपने मुख की छाया-प्रतिविम्ब न देख सके उसकी आय छह महीने की होती है 11 1 5311