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भन्याहुसंहिता
खजूरोऽप्यनलो वेणुगुल्मो वाप्यहितो द्रुमः ।
सस्तके तस्य जायेत गत एक स निश्चितम् ।।129१६ स्वप्न में जिगत मरतः पर मुजर, अग्नि संयुक्त यांग लता एवं वृक्ष पदा हुए दिखलायी पड़े इसकी गीघ्र पत्य होती है ।। 12911
हृदये वा समुत्पन्नात् हृद्रोगेण स नश्यति ।
शेषांगेषु प्ररूढास्ते तत्तदंगविनाशकाः ।।: 301 जो न बक्षस्थल पर अपयन खजूर, वांग आदि को उत्पन्न हुआ देना * उसकी हदरा गेम गमग होती है तथा गैर के गांगों में से जिस अंग पर उन पदाथों को जपन्न हो । हुए देगता है उग सा अंग का विनाण होता है ।।1301
रक्तसूवरसूत्रैर्वा रक्तपुष्प विशेषतः।
यदंग बेष्ट्यते स्वप्ने तदेवांग विनश्यति ।।131॥ जाग्यान ग अपने बिग अंग हो मालगुन, मानाप, या कालता-जन्तुओं में वरिटा देना है | उस अंग का विनाश होता है ।।13।।।
द्विपो ग्रहो मनुष्यों का स्वग्ने कर्षति व नरम।
मोक्षं बदस्य बन्धे वा मुक्ति च समादिशेत् ।।।32॥ म्वप्न में जिस मनुष्य हो जो हाथी, मगर या मनुष्य द्वारा खींचते हुए देखता है उसकी कारागार ग मुक्ति होती है ।। 32॥
मा छनं विशा स्वप्ने दिवा बा यस्य वेश्मनि !
अर्थाशो भवत्तस्य भरणं वा चिनिदिशेत् ।।133।। म. यानमा जित ! दिन में भध-मपन्थी या ना प्रवेश होते हुए दिग्बनाई पड़े, उमा-माम अथवा पण सा है ।।! 33।।
विरेनेऽर्थनाशः स्यात् छर्दने मरणं अवम् ।
बा) पादपछत्राणां गृहाणां ध्वंसमादिशेत् ॥11411 जो म्यान विन्या अर्थात सन्तनाने हुए देखता है उसके धन का नाश होता है। यमग ना देखने में मरण होता है। वृक्ष वी नोटी गर न हए देने में घर का नाश होता है ।। 1 3 4।।
स्वगाने रोदनं विद्यात नर्तने बधबन्धनम् । हमने शोकसन्तापं गमने कलहं तथा ।। 1351