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भद्रबाहुसंहिता
अग्नि तत्त्व है। यह स्वभावतः पाप ग्रह है, धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी है । यह मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। यह तीसरे और छठे स्थान में बली और द्वितीय स्थान निमल हो है।
बुध .. उत्तर दिशा का स्वामी, नपुंसक, विदोष प्रकृति, पयामवर्ण और पृथ्वी तत्व है। यह पापग्रह मू०, म०, रा०, १०, रा. के साथ रहने से अशुभ और चन्द्रमा, गुरु और शुक्र के साथ रहने से शुभ फलदायक होता है । इससे वाणी का विचार किया जाता है । मिथुन और कन्या राशि का स्वामी है 1
गुग---पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पीतवर्ण और आकाश तत्त्व है। यह चर्वी और कफ की वृष्टि करने वाला है। यह धनु और मीन का स्वामी है ।
शुक्र----दक्षिण-पूर्व का स्वामी, स्त्री, श्याम-गौर वर्ण एवं कार्य कुशल है । छठे स्थान में यह निष्फल्द और सातवें में अनिष्टकर होता है। यह जलग्रह है, इसलिए कण, वीर्य आदि धातुओं का कारक माना गया है । वृष और तुला राशि का स्वामी है।
शनि... पश्चिम दिशा का स्वामी, नमक, वात मिसवाष्णवर्ण और वायुतत्त्व है । यह सलाम स्थान में वली, वजी या चन्द्रमा के साथ रहने त छष्टाबली होता है । यह मकर और कुम्भ राशियों का अधिपति है।
रस्तु । दक्षिण दिशा का स्वामी, वर्ण और क्रूर ग्रह है 1 जिस स्थान पर यह रहता है, उस स्थान की उन्नति को रोकता है:
केतु-कृष्ण वर्ण और क्रूर ग्रह है।
जिस देश या राजस में क्रूर-ग्रहों का प्रगाव रहता है या क्रूर ग्रह वक्री, मार्गी होती है, उस देश या राज्य में दुष्काल, अब दया नाना प्रकार के अन्य उपद्रव होते है। शुभग्रहों जयप और प्रभाव में राज्य या देश में शान्ति महती है । नवीन वस्त्रो का बुध, गुऔर शुक्र को, द्वितीया, पंचमी, रातमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूणिमा तिथि को तथा अश्विनी, रोहिणी, नम शिर, आद्री, पुनर्वगृ, पुष्य, उत्तरा सीना, स्वाति, अनुराधा, यवन, अनिष्टा और रेवती नक्षत्र में व्यवहार करना चाहिए । नवीन वस्त्र शर्वदा पूर्वाहन में धारण करना चाहिए।