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માનકુલહિતા
पाप-स्वप्नों को शान्ति के लिए देव, साधुजन बन्धु और द्विजातियों का पूजन और सत्कर्म तथा उपवास करना चाहिए ॥841
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एते स्वप्ना यथोद्दिष्टा: प्रायशः फलदा नृणाम् । प्रकृत्या कृपया चैव शेषाः साध्या निमित्ततः ॥851 उपयुक्त यथा अनुसार प्रतिपादित स्वप्न मनुष्यों को प्रायः फल देने वाले हैं, अवशेष स्वप्नों को निमित्त और स्वभावानुसार समझ लेना चाहिए ||85|| स्वप्वाध्याय ममुं मुख्यं योऽधीयेत शुचिः स्वयम् । स पूज्यो लभते राज्ञो नानापुण्यश्च साधवः ॥ 8 ॥
जी पवित्रामा स्वयं इरा स्वप्नाध्याय का अध्ययन करता है, वह राजाओं के द्वारा पूज्य होता है तथा पुण्य प्राप्त करता है ||8 ||
इति नै भद्रवाहुक निमित्ते स्वप्नाध्यायः षद्विशोऽध्यायः समाप्तः 261
विजनवशास्त्र में प्रधानतया निम्नलिखित सात प्रकार के स्वप्न बताये गये है
दुष्ट जो कुछ जागृत अवस्था में देखा हो उसी को स्वप्नावस्था में देखा
जाय ।
के पहले कभी किसी से सुना हो उसी को स्वप्नावस्था में देखे । अनुभूत – जो जागृत अवस्था में किमी भाँति अनुभव किया हो, उसी को स्वप्न में देखे ।
प्रार्थित जिनकी जागृतावस्था में प्रार्थना इच्छा की हो उसी को स्वप्न में दंग ।
कल्पित जिसकी जागृतावस्था में कभी भी कल्पना की गयी हो उसी को स्वप्न में देखे |
भाविक अभी तो देखा गया हो और न सुना गया हो, पर जो भविष्य में घटित होने वाला हो उसे स्वप्न में देखा जाय ।
दोषज वात, पित्त और कफ के विकृत हो जाने से जो स्वप्न देखा जाय । छन सात प्रकार के स्वप्न में से पहले पाँच प्रकार के स्वप्न प्रायः निष्फल होत है वस्तुतः भाविक स्वप्न का फल हो सत्य होता है।
रात्रि के शहर के अनुसार स्वप्न का फल- रात्रि के पहले प्रहर में दख गये एक से, दूगर प्रहर में देखे गये स्वप्न आठ महीने में (चन्द्रमन मुनि