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षडविंशतितमोऽध्यायः
अहिर्वा वृश्चिक: कीटो यं स्वप्ने दशते नरम् ।
प्राप्नुयात् सोऽर्थवान् यः स यदि मोतो न शोचति ||53|| जो व्यक्ति स्वप्न में साँप, बिच्छू या अन्य कीड़ों द्वारा काटे जाने पर भयभीत नहीं होता और शोक नहीं करता हुआ देखता है, वह धन प्राप्त करता है |53|| पुरीषं 'छदनं यस्तु भक्षयेन्न च शंकयेत् । भूद्रं रेतश्च रक्तं च स शोकात् परिमुच्यते ||54||
जो व्यक्ति स्वप्न में विना घृणा के टट्टी, वमन, मूत्र, वीर्य, रक्त आदि का भक्षण करता हुआ देखता है. वह शोक से छूट जाता है |54||
कालेयं चन्दनं रोल घर्षणे च प्रशस्यते ।
अत्र लेपानि पिष्टानि तान्येव धनवृद्धये ॥ 55 ! |
जो व्यक्ति स्वप्न में कालागुरु, चन्दन, गेल-तग की विगत से सुगन्धि के पता है तथा उनका रवीना देता है, उसके धन
को वृद्धि होती है 11550
रक्तानां करवीराणामुत्पलानामुपानयेत् ।
लम्भो वा दर्शने स्वप्ने प्राणो वा विधीयते |56||
स्वप्न में रक्तकमल और नीलकमलों का दर्शन, ग्रह्ण और त्रोटन - तोड़ना देखने से प्रयाण होता है 1156
कृष्णं वासो हयं कृष्णं योऽभिरूढः प्रयाति च । दक्षिणां दिशमुद्विग्नः सोऽभिप्रेत यतस्ततः ॥ 57
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जो व्यक्ति स्वप्न में काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर सवार होकर किन्न हो दक्षिण दिशा की ओर गमन करता है वह विषय में मृत्यु को प्राप्त होता है |57
आसनं शाल्मलीं वापि कदलों "पालिभत्रिकाम । पुष्पितां यः समारूढः सवितमधि रोहति ॥8॥
लामो गं वंदना या ना देखता है उसे सम्पत्ति प्राप्त होती है 11581
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देवया नीम के वृक्ष पर
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