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________________ 436 भद्रबाहुसंहिता जो स्वप्न में तपन गर्दाशक्त रथ में आरूढ़ दक्षिण दिशा का ओर जाता हैया देखता है, वह मनध्य शीघ्र ही भरण वो प्राप्त हो जाता है ।।3311 वराहयक्ता या नारी ग्रीवाबद्ध प्रकर्षति । सा तरया: पश्चिमा रात्री मृत्युः भवति पर्वते ।।341 यदि गत्रि के उत्तरार्ध में रवान में कोई शूकर युक्त नारी किसी की बंधी हुई गर्दन तो बींचे तो उसकी किसी पहाड़ पर मृत्यु होती है ।।34॥ खर-शूकरयुक्तेन खरोष्ट्रण वृकेण वा। रथेन दक्षिणा या विशं रियो गर । स्थान में कोई व्यक्ति खर-गर्दभ, शुक र ऊंट, मडिया सहित रथ में दक्षिण दिशा को जाय तो लोन उस गावित का परण होता है ।। 35।। कृष्णवासा यदा भत्या प्रवास नावगच्छति। मार्गे सभयमाप्नोति याति दक्षिणगो वधम् ।।3611 स्थान में यदि ष्णवारा होने पर भी प्रवास को प्राप्त न हो तो मार्ग में भय प्राप्त होता है तथा दक्षिा दिणा को ओर गमन दिखलाई पड़े तो मृत्य भी हो नाती है ॥36।। युगमेकखरं शूलं यः स्वग्नेष्वभिरोहति । सा तम्य पश्चिमा रात्री यदि साधु न पश्यति ।।3711 जो व्यक्ति ।। . पिछले भाग में स्वप्न में यज्ञ स्तम्भ, गदंभ, गाल पर आगहिरा हानामा २६ पयाणा नहीं देख पाना है ।। 371 दुर्वासः कष्णभमश्च वापतैलविपक्षितम् । रस तस्य पश्चिमा रात्री यदि साधु न पश्यति ॥3॥ यदिई व्यक्ति रात्रि के पिछल प्रह' में प्रधान में दुर्वामा, कृष्ण भस्म, तेल न करना आदि देस को उमका कायाण नहीं होता है । 3811 अभक्ष्यभक्षणं चैव जितानां च दर्शनम् । कालपुरुपलं चैव लभ्यतेऽर्थस्य सिद्धये ॥39।। rit १ करला. पूज्य व्यक्तियों का दर्शन करना.मामयिक पुष्प । TE पापित लिए होता है ।139। Ji: :: : । । 3 मार्ग ।
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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