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भद्रबाहुसंहिता
ही विपति से छुटकारा प्राप्त करता है 112 111
प्रपानं यः पिबेत् पानं बद्धो वा योऽभिमुच्यते ।
विप्रस्य सोमपानाय शिष्याणामर्थवृद्धये ।।22॥ यदि स्वप्न में गर्वत या जल को पीता हुआ देखे अथवा किसी बँधे हुए व्यक्ति को छोड़ता हुआ देश तो इस स्वप्न का फल ब्राह्मण के लिए सोमपान और शिष्यों के लिए धन वृद्धिक र होता है ।। 22॥
निम्नं कपजलं छिद्रान् यो भीतः स्थलमारुहेत।
स्वप्ने स वर्धते सस्य-धन-धान्येन मेधसा ॥23॥ जो व्यक्ति स्वप्न में नीचे कुएं को जल को छिद्र को और भयभीत होकर स्थान पर चढ़ता हा देगता है बरधन-धान्य और बुद्धि के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होता है ।1231
श्मशाने शुष्कदार वा वल्लि शुष्कद्रुमं तथा।
'यूपं च मारुहेश्वऽस्तु स्वप्ने व्यसनमाप्नुयात् ।।24।। जोति बसार को सभा, अहाही लकड़ी को देखता है अथवा यज्ञ jटे '[र जो जानो चरता हुआ देता है, वह विपत्ति को प्राप्त होता है ।10-11
तपु-सोसायसं रज्जु नाणक मक्षिका "मधुः ।
यस्मिन् स्वप्ने प्रयच्छन्ति मरणं तस्य ध्रुवं भवेत् ॥25॥ जो व्यक्ति स्वप्न में योगा, गंगा. जस्ता. पोनन्न, रज्ज, सियका तथा मधु का दान करता हुआ देखता है, उसका मरण निश्चय होता है ।।25।।
अकाल फलं पुष्पं काले वा पब्ज भितम् ।
यस्मै स्वप्ने प्रदीयते तादृशायासलक्षणम् ।।26॥ जिगरबान में समय के फल-फल या समय पर होने वाले निन्दित फलफलों को जिसको देने हार देखा जाय वह स्वप्न प्रायास नक्षण माना जाता है ॥26॥
अलक्तकं वाऽथ रोगो वा निवातं यस्य वेश्मनि । गहदाघमवाप्नोति चौरर्वा शस्त्रधातनम् ॥27॥
। । सः यो
1 4.15.
मु.। 2 गाम म् । 3. नागरक्षग॥ मा.
यासो नको म.
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