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भद्रबाहुसहिता
नागरे तु हते विन्द्यान्नागराणां महद्भयम् ।
एवं यायिवधे जयं यायिनां तन्महद्भयम 17॥ नगर संज्ञक ग्रहों के युद्ध होने या घातित होने का नागारको नो महान् भय होता है एवं यायो ग्रहों के युद्ध होने पर यात्रियों—आक्रमकों के लिए महान् भय होता है ॥7॥
ह्रस्वो विवो रुक्षश्च श्यामः कान्तोऽपसव्यगः ।
विरश्मिश्चाप्यरश्मिश्च हतो जयो ग्रहो युधि ॥8॥ युद्ध में विकृत र शिम या अलग रश बाला ग्रह रव, वित्रण, रूक्ष, श्याम, कान्त, अपव्य दिशा में रहने - - छातिन !! माना । अनि पर और हानि कारने वाला होता है ।18।।
स्थलः स्निग्ध: सुवर्णश्च सुरश्मिश्च प्रदक्षिणः ।
उपरिष्टात् प्रकृतिमान् ग्रहो जयति तादृशः ॥७॥ स्थूल, स्निग्छ, सुन्दर, अच्छी रगियों वाला, प्रदक्षिण, ऊपर रहने वाला और कान्तिमान् ग्रह जटर को प्राप्त होता है ।1911
उल्काक्यो 'हतान हन्यु गरान् संयुगे ग्रहान् ।
नागराणां तदा विन्द्याभयं धोरमुपस्थितम् ।।100 जब युद्ध में नागर ग्रह नमादि के द्वारा यातित हों तो नागरिकों को अत्यन्त भय होता है ।। 100
यायिनो वामतो हत्यग्रहयद्धे विमिश्रकाः।
पीड्यन्ते भौमपीडायां भयं सर्वत्र संयुगे ॥1॥ युद्ध में यदि विभिनयः- उल्का, तारा, अननि आदि के द्वारा यायो संज्ञक ग्रह करायीं और से पीड़ित किये जायें तो भी पीडा टान पीड़ित होत हैं 11 | 1 ||
सौम्यजातं तथा विप्राः सोम नक्षत्र-राशयः । उदीच्याः पार्वतीयाश्च पाञ्चलाद्यास्तथैव च ॥12॥ पोड्यन्ते सोमघातेन नभो धूमाकुलं भवेत् ।
तन्नामधेयास्तद्भक्ता: सर्व पोड्यन्ते तान्समान् ॥1॥ पदि चन्द्रभा के द्वारा ग्रह पीड़ित हो और आकाश धूम व्याप्त हो तो
1. हा मु।।