SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अयोविंशतितमोऽध्याय: 389 नृपा भूत्यैविरुध्यन्ते राष्ट्र चौरविलुण्ठ्यते । पूर्णिमायां हते चन्द्र ऋक्षे वा विकृतप्रभे ॥14॥ पूर्णिमा में चन्द्रमा द्वारा घात नक्षत्र पर चन्द्रमा के स्थित होने पर अथवा विकृत प्रभा बाले चन्द्रमा के होने पर राजा और सेवकों में विरोध होता है तथा चोरों के द्वारा राष्ट्र लूटा जाता है ।।4।। हस्वो रुक्षश्च चन्द्रश्च श्यामश्चापि भयावहः । रिमा शुक्लो हिमांश्चन्द्रो मावृद्धये ॥15॥ हस्त्र, रूक्ष और काला चन्द्र भयोत्पादया है तथा स्निग्ध, शुक्ल और सुन्दर । चन्द्र मुखोत्पादक तथा समृद्धिकारक होता है 111511 श्वेतः पीतरच रश्तश्च कृष्णश्चापि यथाक्रमम् । सुवर्णसुखदश्चन्द्रो विपरीतो भयावहः ।।16। मवेत, पोत, रक्त और कृष्ण बामणादि बागें वर्गों के लिए मुखद यथाक्रम । होता है और सुवर्ण ---गुदा चन्द्र सभी के लिए सुखद है । इसके विपरीत चन्द्र ) भयावह होता है ।।16।। चन्द्र प्रतिपदि योऽन्धो ग्रहः प्रविशतेऽशुभः। संग्रामो जायते तत्र सप्तराष्टविनाशनः ॥17॥ यदि प्रतिपदा तिथि को चन्द्रमा में अन्य अशुभ ग्रह प्रविष्ट हो तो गयंकर मांनाम होता है तथा सात राष्ट्रों का विनाश होता है ॥1711 द्वितीयायां तृतीयायां गर्भनाशाय कल्पते। चतुया च सुधाती च मन्दवृष्टिञ्च निदिशेत् ।।18॥ अदि सितीया, तृतीया तिथि को चन्द्रमा में अन्य अशुभ ग्रह प्रविष्ट हो तो गर्भनाश करने वाला होता है । चतुर्थी तिथि में प्रवेश करे तो बात और मन्दवृष्टि करने वाला होता है ।।1 811 पञ्चभ्यां ब्राह्मणान सिद्धान दीक्षितांश्चापि पीडयेत् । यवनाय धर्मभ्रष्टाय षष्ठ्यां पीडां बजन्स्यत: ॥19॥ पञ्चमी तिथि में चन्द्रमा में कोई अशुभ ग्रह प्रवेश करे तो ब्राह्मण, सिद्ध और दीक्षिता को पीडा तथा पप्ठी तिथि में कोई अशुभ ग्रह प्रवेश कर तो धर्मरहित, यवन आदि को कष्ट होता है ॥19॥ । मही श्रीपा। भ० 1 2. आर मगा गु० ।
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy