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त्रयोविंशतितमोऽध्याय:
मासे-मासे समुत्थानं यन्त्र यो' पश्येत् बुद्धिमान् ।
वर्ण-संस्थानं रात्रौ तु ततो ब्रूयात् शुभाशुभम् ॥1॥ जो बुद्धिमान् व्यक्ति रात्रि में प्रत्येक महीने में चन्द्रमा के वर्ण, संस्थान, प्रमाण आदि का दर्शन करता है, उसके लिए शुभाशुभ का निरूपण करता
स्निग्धः श्वेतो विशालश्च पवित्रश्चन्द्रः शस्यते।
किञ्चिदुत्तरशृङ्गश्च दस्यून हन्यात् प्रदक्षिणम् ॥2॥ स्निग्ध, श्वेतवर्ण, विमानाकार और पवित्र चन्द्रमा प्रशमित- अच्छा माना जाता है । यदि चन्द्र गा का शुग .. पिनारा कुछ उत्तर की ओर उठा हुआ हो तो । दस्युओं का घात करता है ।।।।
अश्मकान् भरतानुडान काशि-कलिंगमालवान् ।
दक्षिणद्वीपवासांश्च हन्यादुत्तरशृङ्गवान ।। उत्तर गवाना चन्द्रमा अश्मका, भरत, इड, काशी, कलिंग, मालव और दक्षिणद्वीपवासियों का बात करता है ।।3।।
क्षत्रियान् यवनान् बाह्रोन् हिमवच्छृङ्गमास्थितान् ।
युगन्धर-कुरून् हन्याद् ब्राह्मणान् दक्षिणोन्नतः ॥4॥ दक्षिणोन्नतशृग चन्द्र क्षत्रिय, यवन, बाहीक, हिमाचल के निवागी, युगन्धर __और गुर निवासियों तथा ब्राह्मणों का बात वारता है ।।4।।
भस्माभी नि:प्रभो रूक्ष: श्वेतशृङ्गोऽतिसंस्थितः।
चन्द्रमा न प्रशस्येत सवर्णभयंकरः ॥5॥ भन्म के समान आभा बाला, निष्प्रभ, रू, श्वेत और अति उन्नत पवाला चन्द्रमा प्रशंस्य नहीं है; क्योंकि यह गभी वर्ण बालों को भय उत्पन्न करता है ।। 51 )
शबगन् दण्डकानुडान् मद्रांश्च द्रविडांस्तथा। श्द्रान् महासनान वृत्यान् समस्तान सिन्धुसागरान् ।।6। आनन्मिलकीरांश्च कोंकणान् प्रलयम्बिनः । "रोमवृत्तान् पुलिन्द्रांश्च मारुश्वभ्र च कच्छजान् ॥7॥
1. पश्य
भ० । 2. गमा म..।