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भद्रबाहुसंहिता
जब मूर्य में दक्षिण या बायीं ओर पीतवर्ण का कबन्ध दिखलायी पड़े तो । चविल मलय, उड़. स्त्री राज्य और बनवामी, किष्किन्धा, कुनाट, ताम्रकर्ण, वक्रचक्र, क्रूर और कुणों का घात करता है ।। 7-81
अपरेण च कवन्धस्तु दृश्यते द्युतितो यदा। युगन्धरायणं मरुत्-सौराष्ट्रान कच्छगरिजान् ॥७॥ कोंकणानपरान्तांश्च भोजांश्च कालजीविनः ।
अपरांस्तांश्च सर्वान् वै निहन्यात् तादृशो रविः ॥10॥ यदि पश्चिम की ओर छ तिमान् कबन्ध दिखलायी पड़े तो युगन्धरायण, मरुत्, गौराष्ट्र, कच्छ, गरिक, कोंकण, अपगन्त राष्ट्र, भोज, कान जीवी इत्यादि राष्ट्रों बाद बात करता है ।। 9-10||
उत्तरे उदयोऽर्कस्य कबन्धसदशस्तदा। क्षुद्रकामालवाहीकान् सिन्धु-सौवारदर्दुरान् ॥1॥ काश्मीरान दरवांश्चैव पहलवान मागधांस्तथा ।
साकेतान् कोशलान् काञ्चीमहिच्छत्रं च हिसति ।।12।। अदि नबन्ध के समान उत्तर में सूर्य का उदय हो तो वह क्षुद्रक, मालव,. सिन्धु, गौकीर, दर्दर, काश्मीर, नदपहब, मगध, गावेत, बाल, काञ्ची और अहिच्छत्र का धात करता है ।।।I-I 2||
कबन्धमुदये भानोयंदा मध्ये प्रदश्यते।
मध्यमा मध्यसाराश्च पीड्यन्ते मध्यदेशजाः ।।133 यदि मुर्य के मध्य में कयन्ध्र का उदय दिखलायी गड़े तो मध्य देश में उत्पन्न व्यक्तियों का पास होता है ।। 1 3।।
नक्षत्रमादित्यवर्णो यस्य दृश्येत भास्करः।
तस्य पीडा भवेत् पुंसः प्रयत्नेन शिवः स्मृतः ॥14॥ जिम कावित के नक्षत्र पर रक्तवर्ण दिखलायी पड़ता है, उस व्यक्ति को पीड़ा होती है और बड़े अन्न के पश्चान कल्याण होता है ।। 1 411
स्थालीपिठरसंस्थाने सुभिक्षं वित्तदं नृणाम् । वित्तलाभस्तु राज्यस्य मृत्युः पिठरसंस्थिते ॥15॥
1. पदमा लिबान सन्ति मिभु-गौयी रमान म । 2. शुभ म । 3. गुणी मुर