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एकविंशतितमोऽध्यायः
तो प्राणों का अन्त करने वाला और रोग पैदा करने वाला होगा ।
ओद्दालक केतु श्वेत केतु, ककेतु औद्दालक और श्वेत केतु इन दोनों का अग्रभाग दक्षिण की ओर होता है और अर्द्धरात्रि में इनका उदय होता है । ककेतु प्राची प्रतीची दिशा में एक साथ युगाकार से उदय होता है। औद्दालक और श्वेतकेतु सात रात तक स्निग्ध दिखायी देते हैं। केतु कभी अधिक भी दिखता रहता है | वे दोनों स्निग्ध होने पर 10 वर्ष तक शुभ फल देते हैं और रूक्ष होने पर शस्त्र आदि से दुःख देते हैं । उहालक केतु एक सौ दस वर्ष तक प्रवास में रहकर भटकेतु की गति के अन्त में पूर्व दिशा में दिखायी देता है |
पद्मकेतु - श्वेतकेतु के फल के अन्त में श्वेतपद्मकेतु का उदय होता है । पश्चिम में एक रात दिखायी देने पर यह मात वर्ष तक आनन्द देता रहता है। काश्यप श्वेतकेतु - काय तनो रूक्ष, ज्याब ओर जटा की-मो आकृति का होता है। यह आकाश के तीन भाग को आक्रमण करके वासी चोर लोट जाता है। यह उन्हाश शिखी 115 वर्ष तक प्रवागित रहकर महज पद् की गति के अन्त में दिखायी देता है। यह जितने महीने दिखायी दे उतने ही वर्ष सुभिक्ष करता है। किन्तु राध्य देश के आय का और औदीच्यों का नाश करता है ।
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आयत कंतु केतु के समाप्त होने पर पश्चिम में अर्द्धरात्रि के समय शंख की आभावाला आवकेनुदित होता है । यह केतु जितने गुहूतं तक दिखायी दे, उतने ही महीने गुभिक्ष करता है। यह गदा संसार में यज्ञोत्सव करता है । रश्मि केतु - काश्यप के समान यह किंतु फल देता है। यह कुछ धूम्रवर्ण की शिखा के साथ कृतिका के पीछे दिखायी देता है। विभावसु गे पैदा हुआ यह गण्म के सो वर्ष प्रोषित हार व केतु की गति के अन्त में कृत्तिका नक्षत्र के समीप दिखायी देता है।
वसाकेतु, अस्थिकेतु, शस्त्रकेतु धगान् गन्त सिग्ध सुभिक्ष आर महामारीप्रद होता है। यह 130 वर्ष बागित रहकर उत्तर की और लम्बा होता हुआ उदित होता है। बरातेतु के समान अस्थिकेतु हो तो क्षुद् यावह होती है ( भुखमरी पडती है ) । पश्चिम में गातु की समानता का दीखा हुआ शस्त्रकेतु महामारी करता है।
कुमुदकंतु- कुमुद की आभावाला, पूर्व की तरफ शिखा बाला, स्निग्ध और दुग्ध की तरह स्वच्छ कुमुदन पश्चिम में साकेतु की गति के अन्त में दिखायी देता है। एक ही रात में दिखायी दिया हुआ यह मुभिक्ष और दस वर्ष तक गुहृद्भावा करता है, किन्तु पान्चान्य देशों में कुछ रोग उत्पन्न करता है। कपाल किरण कपाल कपाची दिशा में अभावस्या के दिन आकाश के मध्य में धूम्र किरण की शिखावाला होकर रोग, वृष्टि, भुख बार
हुआ