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एकविंशतितमोऽध्याय:
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शुओं की संख्या का योग निम्न प्रकार है
25-1-25-1-25 4-22+3+-1 - 101; 84-1-61-1-65151-160+33.f. 120+ 77-+8+ 204432+96 19=899%; इस प्रकार कुल 899 +101--1000
जो केतु पश्चिम दिशा में उदय होते हैं, उतर दिशा में फैलने हैं, बड़े-बड़े स्निग्धमूर्ति हैं उनको वसाकेतु कहते हैं, इनके उदय होने में मारी पड़ती है और मुभिक्षा होता है। सूक्ष्म, या चिकने वर्ण के केनु उत्तर दिशा से आरम्भ होकर पश्चिम तक फैलते हैं, उनके उदय से क्षुधाभय, उलट-पुलट और मारी फैलती है । अमावस्या के दिन आनाश के पूर्वार्द्ध में सहल र श्मि केतु दिवनायी देता है, उसका नाम कपाल केतु है। इसके उदय होने में क्षुधा, मारी, अनावृष्टि और रोगभय होता है। आकाग के पूर्व दक्षिण भाग में ग्न के अग्रभाग के समान कपिश, रक्ष, ताम्रवणं की किरणों में शुन्ध जो का आकाश के तीन भाग तक गमन करता है, उसको रोद्र वेनु नाहते हैं, इसका फल कापान वान व समान है । जो धूम्रनेन पश्चिम दिशा में उदय होता है, नक्षिण की ओर एक अंगुल ऊंची शिखा करके युक्त होता है और उत्तर दिशा की तरफ क्रमानुसार बढ़ता है, उसन। चलपेतु कहते हैं । यह चलकेतु क्रमशः दीर्घ होकर यदि उत्तर धव, सप्तपि मंडल या अभिजित् नक्षत्र को स्पर्श करता हुआ आकाश वा एका भाग में जाकर दक्षिण दिशा में अस्त हो जाय, तो प्रयाग से लेकर अवन्ती सका प्रदेश में दुभिक्ष, रोग एवं नाना प्रकार के उपद्रव होते हैं। मध्यरात्रि में आकाश के पूर्वभाग में दक्षिण के आगे जो न दिशानायी दे, उसको धूमन पहने है। जिस वे का आनार गाड़ी के जुग ममान है, ब... युग परिवर्तन : गाय मात दिन तक दिग्बलायरी पड़ता है। धूमकेन यदि अनिमः दिनों तर. दिखलायी दे तो दश वर्ष तक शस्त्रप्रकोप लगातार बना रहता है और नाना प्रकार के संताप पूजा की देता रहता है 1 प्रवत नामक नेतु यदि जटा द. समान आकार बाला, रूखा, नापिशवर्ण और आमाण के तीन भाग तक जाकर लौट आये तो प्रजा का नाश होता है। जो नेतु धूम्रवर्ण की चोटी से युक्त होकर कृत्तिता नक्षत्र को स्पर्श कर, उसको रामकेतु कहते हैं। इसका फल श्वेत नामक सन्तु के समान है । ' नामक प्रकार का केनु है इसका आकार, वर्ण, प्रमाण स्थिर नहीं हैं। यह दिव्य , अन्तरिक्ष और भौम तीन प्रकार का होता है। यह स्निग्ध और अनियत फल देता है। जिभ काम की कान्ति कुमुद के समान हो, चोटी पूर्व की ओर फैल रही हो. इसे कुमुद मन वाहत हैं। यह बराबर दस वर्ष तक मुभिक्ष देने वाला है। जो कतु म तारक समान आकार वाला हो और पश्चिम दिशा में नीन बंदी न लगाना दिलाया द उसका नाम मणिकंतु है। स्तन पर दबाव देने में जिस प्रकार दुध को धारा निकलती है, उसी प्रकार जिसी किरणे छिटकती है, यह काम नगी प्रकार