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भद्रबाहुसंहिता
रोगं सस्यविनाशञ्चः दुस्कालो मृत्युविद्रवः ।
मासं लोहितकं ज्ञेयं फल मेवं च पञ्चधा ॥10॥ विक्षिल-यदि विकृत केतु दिखलाई पड़े तो प्रजा में फूट और क्षीण केनु दिखलाई पड़े तो पराजय, संपुर्ण शृगाकार दिखलाई पड़े तो सींगवाले पशुओं का बध और कबन्ध्र · घड़-आकार दिखलाई पड़े तो मनुष्यों की मृत्यु होती है। इस प्रकार के केतु में रोग उत्पन्न होते हैं, धान्य -फसल का विनाश होता है, अकाल पड़ता है. मृत्यु-उपद्रव होते है एवं पृथ्वी मांस बार खून से भर जातो है, इस प्रकार पांच प्रकार का फल होता है 19-1011
मानुष: पशु-पक्षीणां समयस्तापसक्षये।
विषाणी दष्ट्रिधानाय सस्थघाताय शंकरः ॥1॥ उपर्युक्त प्रकार का केतु पशु-पक्षियों के लिए मनुष्यों के समान दुःखोत्पादक, तपस्वियों को क्षय करने के लिए समय के समान, दंष्ट्री- दांत से काटने वाले व्याघ्रादि के लिए विपयुक्त मादि के समान और फसल का विनाश करने के लिए कद्र के समान है |||1|
अंगारकोऽग्निसंकाशो धमकेतुस्तु धूमवान् ।
नीलसंस्थानसंस्थानो वैडूर्यसदृशप्रभः ।।12।। अग्नि के तुल्य केनु अंगारक, धूम्रवर्ण का कंतु धूमकेतु और बैडूर्यमणि के समान नीलवर्ण का केनु नीलसंस्थान है ।।।211
कनकाभा शिखा यस्य स केतु: कनक: स्मत:।
यस्योवंगा शिखा शुक्ला स केतुः श्वेता उच्यते ।।13।। जिन बानुली शिया कनक के समान कान्ति बाली है वह गातु कनकप्रश और जिस नातु के ऊपर की शिला शुक्ल है वह केनु श्वेत कहा जाता है ।।। 311
त्रिवर्णश्चन्द्रवद् वृत्तः समसर्पवदंकुरः ।
त्रिभिः शिरोभिः शिशिरो गुल्मकेतुः स उच्यते॥4॥ तीनवणं वाना एवं चन्द्रमा के समान गोन केतु समसवांकुर नाम का होता है, तीन गिर वाला बातु शिशिर कहलाता है और मुल्म के ममान के गुल्मकेतु कहलाता है ।।। 40
1. 14. T A. 12 काना मु. 13 नानी-I. 14. अग्न म । 5. म.6. - तु । गगवत् ।। ।
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