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भद्रबाहुसंहिता
जब मध्य रात्रि में राहु चन्द्रमा को ग्रस्त बारता है तब वैश्यों के लिए भय होता है ।।461
नोचावलम्बी सोमस्तु या गृह्येत राहुणा ।
सूप्पाकारं तदाऽऽनत मरुकच्छं च पीडयेत् ॥471 नीच राशिस्य चन्द्रमा -वृश्चिक राशिस्थ चन्द्रमा को जब राहु ग्रस्त करता है तो सूकिार, आनर्त, मरु और कच्छ देशो को पीड़ित करता है ।। 47।।
अल्पचन्द्रं च द्वीपाश्च म्लेच्छाः पूर्वापरा द्विजाः।
दीक्षिताः क्षत्रियामात्या: शूद्रा: पीडामवाप्नुयुः ॥48॥ यदि अपनन्द्र का ग्रहण हो तो म्लेम आदि द्वीप, पूर्व-पश्चिम निवासी द्विज, मुनि-मान, क्षत्रिय, अमात्य और शूद्र पीड़ा को प्राप्त होते हैं ।।48।।
यतो राहुप्रंसेच्चन्द्र' ततो यात्रां निवेशयेत् ।
दृते जिलो माजा यशो सम्हाद् भयम् ॥4॥ जब राहु द्वारा चन्द्रग्रहण होता है तो यात्रा में मकावट राम चाहिए। चन्द्रग्रहण के दिन यात्रा करने वाला व्यषित यों ही वापस लौट जाता हैं, अतः यात्रा में भय है 1149||
गृहणीयादेकमासेन चन्द्र-सूर्यो यदा तदा।
रुधिरवर्णसंसक्ता सङ्ग्रामे जायते मही॥500 जब एक ही महीने में चन्द्रग्रहण और मूर्य ग्रहण दोनों हों तो पृथ्वी पर युद्ध होता है और पृथ्वी रक्तरंजित हो जाती है ।154://
चौराश्च शायिनो म्लेच्छा नन्ति साधूननायकान् ।
विरुध्यन्ते गणाश्चापि नपाश्च विषये चरा: ।।5।। उक्त दोनों ग्रहणों के होने पर वे चोर, यावी, नन्छ, नेतृत्वविहीन साधुओं का घात करते हैं तथा देश-बिशेष में दूत, राजा और गों को रोक लिया जाता है।1511
यतोत्साहं तु हत्वा तु राजानं निष्क्रमते शशी।
तदा क्षेमं सुभिक्षञ्च मन्दरोगांश्च निदिशेत् ।।52।। चन्द्रमा पहले राहु को परास्त कर निकल आये तो क्षेम, गुभिक्ष तथा रोगो की मन्दता होती है ।। 5211
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