________________
अष्टादशोऽध्यायः
335
कृत्तिका में लाल वर्ण का बुध हो तो अग्नि प्रकोप करने वाला, रोहिणी में हो तो क्षय करने वाला होता है ! और यदि मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा इन नक्षत्रों में कलुषित बुध हो तो पितर और विहंगमों तथा घान्य को लाभ होता है ।।2 6-27॥
बुधो विवर्णो मध्येन विशाखां यदि गच्छति ।
ब्रह्म विगाहामा जला लो न संशयः ॥28॥ यदि विवर्ण वुध विशाखा के मध्य से गमन करे तो ब्राह्मण और क्षत्रियों का विनाश होता है, इसमें सन्देह नहीं है 11281
मासोदितोऽनुराधायां यदा सौम्यो निषेवते ।
पशुधनचरान् धान्यं तवा पोडयते भृशम् ॥29॥ जब मामोदित बुध अनुराधा में रहता है तो पशुधन को अत्यधिक कष्ट देता है और धान्य की हानि होती है ।।29।।
श्रवणे राज्यविभ्रशो ब्राह्म ब्राह्मणपीडनम् ।
धनिष्ठायां च वैवयं धनं हन्ति धनेश्वरम् 1130॥ विकृत वर्ण वाला बुध यदि श्रवण नक्षत्र में हो तो राज्य नष्ट होता है, अभिजित् में हो तो ब्राह्मणों को पीड़ा होती है और धनिष्ठा में हो तो धनिकों का और घन का विनाशक होता है ।।3011
उत्तराणि च पूर्वाणि याम्यायां दिशि हिसति ।
धातुवादविदो हन्यात्तज्ज्ञांश्च परिपीडयेत् ॥31॥ ___ यदि वुध दक्षिण मार्ग में तीनों उत्तस-उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरापाढा और उत्तराभाद्रपद तथा तीनों पूर्वा-पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वापाढा और पूर्वाभाद्रपद का घात करे तो धातुबाद के ज्ञाताओं को पीड़ा होती है 113 1॥
ज्येष्ठायामनुपूर्वेण स्वाती च यदि तिष्ठति ।
बुधस्य चरितं घोरं महादु:खदमुच्यते ॥32॥ यदि ज्येष्ठा और स्वाति में बुध रहे तो उसका यह घोर चरित अत्यन्त कष्ट देने वाला होता है 1132॥
उत्तरे त्वनयोः सौम्यो यदा दृश्येत पृष्ठतः । पितृदेवमनुप्राप्तस्तदा मासमुपग्रहः ॥33॥
1. मूकान्धवधिचिव मु.1 2, यदि मु० । 3. महाज निक मुक ।