________________
322
भद्रबाहुसंहिता
वैशाखे नृपभेदश्च पूर्वतोयं विनिविशेत् । ज्येष्ठा मूले जलं पश्चाद् मित्र भेदश्च जायते ॥30॥
वैशाख नामक वर्ष में राजाओं में मतभेद होता है और जल की वर्षा अच्छी होती है । ज्येष्ठ नामक वर्ष में जो कि ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र के मासिक होने पर आता है, अच्छी वर्षा वियों और नोटा है उँटा
प्राषाढ़े तोपसंकीर्ण सरीसृपसमाकुलम् । श्रावणे दंष्ट्रिणश्चौरा व्यालाश्च प्रबलाः स्मृताः ॥31॥
आषाढ़ नामक वर्ष में जल की कमी होती है. पर कहीं-कहीं अच्छी वर्षा होती है और सरीसृपों की वृद्धि होती है। श्रावण नामक वर्ष में दाँत बाले जन्तु चौर, सर्प आदि प्रबल होते हैं 113 11
संवत्सरे भाद्रपदे शस्त्रको पाग्निमूर्च्छनम् । सरीसृपाश्चाश्वयुजि बहुधा वा भयं विदुः 11321
भाद्रपद नामक वर्ष में शस्त्रकोप, अग्निभय, मुर्च्छा आदि फल होते हैं और आश्विन नामक संवत्सर में सरीसृपों का अनेक प्रकार का भय होता है || 320 (कार्तिक संवत्सर में शकट द्वारा आजीविका करने वाले अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण एवं क्रम-विक्रय करने वालों को कष्ट होता है ।)
}
एते संवत्सराचोक्ताः पुष्यस्य परतोऽपि वा । 'रोहिण्यार्द्रास्तथाश्लेषा हस्तः स्वातिः पुनर्वसुः ॥33॥
बृहस्पति के इन वर्षों का फल कहा गया है; रोहिणी के अभिघात से प्रजा सभी प्रकार से दुःखित होती है ॥33॥
अभिजिच्चानुराधा च मूलो वासववारुणाः । रेवती भरणी चैव विज्ञेयानि बृहस्पतेः ।। 14
अभिनित्, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती और भरणी ये नक्षत्र बृहस्पति के हैं अर्थात् इन नक्षत्रों में बृहस्पति के रहने से शुभ फल होता है || 34 || कत्तिकायां गतो नित्यमारोहण प्रमर्दने । रोहिण्यास्त्वभिघातेन प्रजाः सर्वाः सुदुःखिताः ॥35॥
कृतिका नक्षत्र में स्थित बृहस्पति जब आरोहण और प्रमर्दन करता है और रोहिणी में स्थित होकर अभियात करता है तो प्रजा को अनेक प्रकार का कष्ट
1. रोहित्यभिघातेन प्रजा ग्रर्थाः सुदुःखिताः ।