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________________ षोडशोऽध्यायः 311 देश में विग्रह; पाताल, नागलोक, दिशा-विदिशा में विद्रोह, मनुष्यों में क्लेश, वैर, घन का नाश, अन्न की महंगाई, पशुओं का नाश, एवं जनता में भय-आतंक रहता है। मंपराशि का शनि आधि-व्याधि उत्पन्न करता है। पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा अधिक और पश्चिम के देशों में वर्या कम होती है । उत्तर दिशा में फसल अच्छी होती है । दक्षिण के प्रदेशों में आपसी विद्रोह होता है । वृष राशि पर शनि के होने: , पास, लोहा, लवण, तिल, गुड़ महंगे होते हैं तथा हाथी, घोड़ा, सोना, चाँदी सस्ते रहते हैं । पृथ्वी मण्डल पर शान्ति का साम्राज्य छाया रहता है। मिथुन राशि के शनि का फल सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति है। मिथुन के शानि में वर्षा अधिक होती है । कर्क राशि के शनि में लोग, तिरस्कार, धननाश, कार्य में हानि, मनुष्यों में विरोध, प्रशासकों में द्वन्द्व, पशुयों में महामारी एवं देश के पूर्वोत्तर भाग में बर्या की भी कमी रहती है। सिंह राशि के शनि में चतुरुपद, हाथी घोड़े आदि का विनाश, युद्ध, भिक्ष, रोगों का आतंक, समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों में कलेश, म्लच्छा में संघर्ष, प्रजा को सन्ता', धान्य का अभाव एवं नाना प्रकार से जनता को अनान्ति रहती है। कन्या के शनि म काश्मीर देश का नाश, हाथी और घोड़ों में रोग, सोना-चांदी-रत्न का भाव सस्ता, अन्न की अच्छी उपज एवं घतादि पदार्थ भी प्रय र परिमाण में उत्पन्न होते हैं 1 तुला के शनि में धान्य भाव तेज, पृथ्वी में व्याकुलता, पश्चिमीय देशों में क्लेश, मुनियों को शारीरिक कष्ट, नगर और ग्रामों में शेगोत्पत्ति, वनों का विनाश, अल्प वर्षा, पवन का प्रकोप, चोर-डाकुओं का अत्यधिक भय एवं धनाभाव होते हैं। तुला का शनि जनता को कष्ट उत्पन्न करता है, इनमें धान्य की उत्पत्ति अच्छी नहीं होती। वृश्चिक राशि का शनि में राजकोप पक्षियों में युद्ध, भूकम्प, भघों का विनाश, मनुष्यों में कलह, वाइयों का विनाग, शत्रुओं को कलेय एवं नाना प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती है । वृश्चियः के अनि में चेचक, हैजा और क्षय रोग का अधिक प्रसार होता है । काम-श्याम की बीमारी भी बृद्धिगत होती है 1 धनराशि के शनि में धन-धान्य की समृद्धि समयानुकूल वर्मा, प्रजा में शान्ति, धर्मवृद्धि, विद्या का प्रचार, कलाकारों का सम्मान, देश में कला-कौशल की उन्नति एवं जनता में प्रसन्नता का प्रसार होता है। प्रजा को सभी प्रकार के गुल प्राप्त हात हैं, जनता में हर्ष और आगन्द की लहर व्याप्त रहती है। मकार के अनि में सोना, चाँदी, ताँबा, हाथी, घोड़ा, बैल, गुन, मापास आदि पदाथी म भाव महंगा होता है 1 खेती का भी विनाश होता है, जिसम अन्न की उपज भी अच्छी नहीं होती है। रोग के कारण प्रजा का विनाश होता है तथा जनता में एक प्रकार की अग्नि का भय व्याप्त रहता है, जिसमें अशान्ति दिखलाई पड़ती है। कुम्भ राशि के शनि में धन-धान्य की उत्पत्ति दूध होती है । वो प्रचुर परिमाण में और गभग्रानुकूल होती है। विवाहादि उत्तम मांगलि। कायं पृथ्वी पर होत रहने हैं, जिसमें जनता
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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