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________________ पोडशोऽध्यायः 307 दुर्ग में निवास करना होता है । मर्यादा नष्ट हो जाती है । वर्षा विषमा-हीनाधिक होती है और रोगादि फैलते हैं ।।7।। यदा तु त्रीणि चत्वारि नक्षत्राणि शनैश्चरः । मन्दवृष्टि च भिक्षं शस्त्रं व्याधि च निदिशेत् ॥8॥ जब शनि एक वर्ष में तीन या चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है तो मन्दवृष्टि, दुभिक्ष, शस्त्रगोड़ा और रोगादि होते हैं ।।8।। चत्वारि या यदा गच्छेन्नक्षत्राणि महाद्युतिः । तदा युगान्तं जानीयात् यान्ति मृत्युमुखं प्रजा: ॥9॥ यदि शनि एक वर्ष में चार नक्षत्रों का अतिक्रमण करे तो युगान्त समझना चाहिए तथा प्रजा मृत्यु के मुख में चली जाती है ॥9॥ उत्तरे पतितो मार्गे यथेषो नीलता ब्रजेत् । स्निग्धं तदा फलं ज्ञेयं नागर जायते तदा ॥101 रतिप्रधाना मोदन्ति राजानस्तुष्टभूमयः । क्षमा मेघवती विन्धात सर्वबीजप्ररोहिणीम् ।।11॥ उत्तर मार्ग में गमन करता हुआ शनि नीलवर्ण और स्निग्ध हो तो उसका फल अच्छा होता है । गरागी व्यक्ति आमोद-प्रमोद करते हैं. गजा सन्तुष्ट होते हैं और पृथ्वी पर सभी प्रकार के बीजों को उत्पन्न करने वाली वर्षा होती है॥10-110 मध्यमे तु यदा मार्गे कुर्यादस्तमनोदयौ।। मध्यम वर्षणं सत्यं सुभिक्षं क्षेममेव च ॥12॥ यदि शनि मध्यम मार्ग में अस्त और उदय को प्राप्त हो तो मध्यम वर्मा, मुभिक्ष, धान्य की उत्पनि कल्याण होता है।।12।। दक्षिणे तु यदा मार्ग यदि स नीलतां व्रजेत् । नागरा यायिनश्चापि पीड्यन्ते च भटागणा: ।।13।। यदि दक्षिण मार्ग में गमन करता हुआ शानि नीलवर्ण को प्राप्त हो तो नागरिक ओर यायो अर्थात् आक्रमण करने वाले दोनों ही योजागण पीड़ा को प्राप्त होते हैं ।।।3।। 1. भटजा : मः।
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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