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भद्रबाहुसंहिता
व्याधियों का प्रसार, चेचक का प्रकोप एवं अन्य संक्रामक दुधित बीमारियों का प्रसार होता है। श्रवण नक्षत्र का भदन कर शुक्र अपने मार्ग में गमन करे तो कर्ण सम्बन्धी रोगों का अधिक प्रसार और धनिष्ठा नक्षत्र का भेदन कर आगे चल तो आंग्य की बीमारियां अधिक होती हैं। शुक्र की उक्त प्रकार की स्थिति में साधारण जनता को भी कष्ट होता है । व्यापारी वर्ग और कृपक वर्ग को शान्ति
और सन्तोष की प्राप्ति होती है । वर्षा समयानुसार होती जाती है, जिसमे कृषक वर्ग को गरम शान्ति मिलती है। राजनीतिक उथल-पुथल होती है, जिसस साधारण जनता में भी आतंत्र व्याप्त रहता है । जतभिषा नक्षत्र का दिन बार गुम गमन वारे तो क्रूर काम करने वाले व्यक्तियों को वारट होता है। उग नक्षत्र का भेदन मुभ ग्रह के साा होने में गुभ फल और कर ग्रह च, साथ होने में अशुभ फल होता है । पूर्वाभाद्रप का भदन करने में जुबा खेलने बालों को काट, जनगमादाद का भदन बरन रा फल-पृषों की वृद्धि और रेवती न भवन नरज ग येना का विनाश होता है 1 अग्विनी नार में भदन करने में शकर के गाय संयोग मारे तो जनता को जाट और सभ ग्रह का संयोग याने तो लाभ, मरिन और आनन्द की प्राप्ति होती है । भरणी नक्षत्र का मदन करने में जनता को गाधारण वाट होता
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अमावस्या, अस्टमी तिथि को शक का उदय या अस्त हो तो पृथ्वी पर अत्यधि का जन्न की बनी होती है। अनान की उत्पत्ति खूब होती है । यदि गुरु और शुक्र पूर्व-पश्चिम में परस्पर सातवीं राशि में स्थित हों तो रोग और 'भय से प्रजा पीदिन रहती है, वृष्टि नहीं होती । गुम, बुध, मंगल और शनि ये ग्रह यदि गक्र के प्रांग के मार्ग में चलें तो वायु का प्रयोग, मनुष्यों में संघर्ष, अनीति औराचार की प्रति, उकापात और बिद्यपात गजनता में कण्ट तथा अनेक प्रकार के रोगों की वृद्धि होती है। यदि शनि शुभस आग गमन करे तो जनता को करट, वर्षा भाव और बुभिक्ष होता है। यदि मंगल शुक्र में आगे गमन करता हो तो भी जनता में विरोध, विवाद, शास्त्राय, अग्निपथ, चोरभय होने में नाना प्रकार में काट सहन करने पड़ते हैं। जनता में गभी प्रकार की अशान्ति रहती है। शुक्र के आगे मार्ग में वृहस्पति गमन करना हो तो समस्त मधुर पदार्थ सस्ते होते हैं। शुक्र के उदय या अस्तकाल में शुक्र के आगे जब बुध रहता है तब वर्षा और रोग रहते हैं। पित्त से उत्पन्न ग तथा कार-कामलादि रोग उत्तपन्न होने हैं 1 संन्यामी, अग्निहोत्री, वैच, नृत्य से आजीविका करने वाले; अश्व, गौ, वाहन, पीले वर्ण के पदार्थ विनाश को प्राप्त होते हैं । जिस समय अग्नि के समान शुक्र का वर्ण हो तब अग्निभय, रस्तवर्ण हो तो शस्त्र गोप, कांचन के समान वर्ण हो तो गौरव वर्ण के व्यक्तियों को व्याधि उत्पन्न होती है। यदि शुक्र हरित और कपिल वर्ण हो तो दमा और ग्रांसी का गेग अधिक उत्पन्न होता है।