________________
252
भद्रबाहुसंहिता देवान् प्रजितान् विप्रास्तस्माद्राजाऽभिपूजयेत् ।
तदा शाम्यति तत् पापं यथा साधुभिरीरितम् ॥1800 उत्ात से उत्पन्न हुए दोष की शान्ति के लिए देव, दीक्षित मुनि और ब्राह्मण-वती व्यक्तियों की पूजा करनी चाहिए। इससे जिस पाप से उत्पात । उत्पन्न होते हैं. वह मुनियों के द्वारा उपदिष्ट होनार शान्त हो जाता है ।। 1800
यत्र देशे समुत्पाता दृश्यन्ते भिक्षभिः क्वचित् ।
ततो देशादतिक्रम्य बजेयुरन्यतस्तदा ।।181।। गुनियों को जिस देश में कहीं भी उत्पात दिखलाई पड़े उस देश को छोड़कर अन्य देश में चना जाना चाहिए 1118111
चित्त सिभिक्षे देशे निरुत्पाते प्रियातिथौं।
बिहरन्ति सुखं तत्र भिक्षयों धर्मचारिणः ।।1821 धन-धान्य से परिपूर्ण, गभिक्ष युगत, निरुपद्रय और अतिथि सत्कार करने वाल देश में धर्माचरण करने वाले साधु सुखपूर्वक विहार करते हैं ।।। 82॥
इति मकलमुनिजनानन्दमहामुनीश्वरभद्रबाहुविरचिते निमित्तशास्त्रे सकलश भाऽशुभयाख्यानविधान कथने चतुर्दशः परिच्छेदः समाप्त: 11411
विवेचन-स्वभाव के विपरीत हा उपास है। ये जगात तीन प्रकार के होने हैं.-.दिव्य, अन्तरिक्ष और भीम 1 देव-प्रतिमा बाग मिग इतालों की सूचना मिलती है, वे दिव्य बना है । गानों का विधारा निर्धात, पवन, विन्य पान, गावरावं इमाणादि अन्ना है। मभूति पर चल एवं स्थिर दार्थी का विपी E] गें दिगन्दायी पहना गौन उत्पात है। प्राचार्य ऋपिपत्र में दिव्य गालों का धन का हुआ बताया है कि ताका प्रतिमा का छा भंग होना, हार-गाँव, स्तन, भामगन का भंग होचा अशुभमुचक है। जिग दे गा नगर में प्रनिनागी बिर या चलिन न हो जाये तो उस देश या नगर में लाभ होता है। घर भंग होने में प्रयासक या अन्य मिमी नेता की मृत्यु, ग्य टने ग राजा रण जिग नगर गं रथ टूटता है, उस नगर में छ: महीने के पाया। मन किन्न की प्राप्ति होती है। नगर में जहामारी, घोरी, दक्ती या अशुभ काम: गहीनो के भीतर ही है। मामला भंग होने रा सीमारे या पांच महीने में गत आती है। उप प्रदेश के शासक या शासन परिवार मिसी की मृत्यु होती है। नगर में धन-जन की हानि होती है । प्रतिमा
PATI