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चतुर्दशोऽध्यायः जब घोड़े शान्त, प्रसन्न और काम से पीड़ित होकर विचरण करें और स्त्रियों के द्वारा देखे जाते हों तो विद्वानों को उनका शुभाशुभत्व नहीं लेना चाहिए ।। 1 59॥
मूत्रं पुरीषं बहुशो विलुप्ताङ्गा प्रकुर्वतः।
हेमन्ते दीन निद्रास्तिदा कुर्वन्ति ते जयम् ।।1601 यदि घोड़े विलुप्तांग होवार अधिक मूत्र और लीद करें और निद्रा से पीड़ित होकर हीसे तो जय को सूचना देते हैं ।। 6010
स्तम्भयन्तोऽथ लांगूलं हेषन्तो दुर्मदो हया: ।
मुहुर्च हुने जम्मको तथा भय पंत ।। 6111 __ पूछ को स्तम्भितं धारते हुए खिन्न होता। घोड़े हींसें और बार-बार भाई लें तो शस्यमय कहना चाहिए ।। 61॥
यदा विरुद्धं हेषन्ते स्वल्पं विकृतिकारणम् ।
दोपसर्गो व्याधिर्वा सद्यो भवति रात्रिजः ।।1621 यदि घोड़े वित कारणों के होने पर विपरीत हींगत हों तो रात्रि में उत्पन्न होने वाली व्याधि या उपमर्ग शीत्र ही होत ह ।।16 211
भूम्यां ग्रसित्वा ग़ासं तु हेषन्ते प्राङमुखा यदा।
अश्वारोधाश्च बद्धाश्च तदा क्लिश्यति क्षुद्भयम् ।।163॥ पृथ्वी में में एकाध कौर घास साकार यदि पूर्व की ओर गुग्यकार पोरे हींसे तो क्षुधा में क्लेश और भय की सूचना देते हैं ।। : (631
शरीरं केसरं पुच्छं यदा ज्वलति वाजिनः ।
परचक्र प्रयातं च देशभंगं च निदिशेत् ।।641 यदि घोड़ों के शरीर, पूंछ और रामधार जलने लगे तो परमागन का आगमन और देशभंगा की सूचना समझनी चाहिए | Ithi |!
यदा वाला प्रक्षरन्ते पुच्छ चटपटायते ।
वाजिनः सःलगा वा तदा विद्यान्महद्भयम् ॥165।। यदि बाारण लोगों के बाल टूट: निलों, पूंछ चट-चट करने लगे और उनके शारीर निग निमन में तो नत्यश्चित. मग मर जाना चाहिए | 1 6 511
हेमन्ते तु तदा राज्ञः पूर्वाल्हे नाग-वाजिनः ।
तदा सूर्यग्रहं विन्ध्रादपराले तु चन्द्रजम् ।।1661 यदि दोपहर में पहले राजा का हाथी, गोडे हीमने लगे तो सूर्य ग्रह और दोपहर