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________________ 242 भद्रबाहुसंहिता परिधाऽर्गला कपाट द्वारं रुन्धन्ति वा स्वयम् । पुररोधस्तदा विन्द्यान्नगमानां महद्भयम् ॥।।4।। यदि स्वयं ही बिना किसी के बन्द विय वडा, सांकल और द्वार के किवाड़ बन्द हो जायं नो पुरोहित और वेद के व्याख्याताओं को महान् भय होता है ।।। 1411 यदा हारेण नगरं शिवा प्रविशते दिवा । वास्यमाना विकृता वा तदा राजवधो ध्रुवम् ॥11511 यदि दिन में गियापिन-.-गीदड़ी नगर के द्वार में विकृत या सिक्त होकर प्रविगट हो तो गजा व बध होता है ।।। 15 अन्तःपुरेषु द्वारेषु विष्णुमित्रे तथा पुरे। अट्टालकेऽथ हट्टषु मधु लीनं विनाशयेत् ।। 16॥ __ यदि मियारिन अन्त गुर, हार, नगर, तीर्थ, अट्टालिका और बाजार में प्रवेश करे तो गुख का विनाश करती है ।। 1 1 6॥ धूमकेतृहतं मार्ग शुक्रश्चरति वै यदा। तदा तु सप्तवर्षाणि महान्तमनयं वदेत् ॥17॥ यदि शत्र भ्रमकत द्वारा आक्रान्त मार्ग में गमन करे तो सात वर्षों तक महान अन्याय-अकल्याण होता रहता है ।। || 71 गुरुणा पहनं गाई यदा भौम: प्रपद्यते। भयं तु सार्वजनिकं करोति बहुधा नृणाम् ।।।।8।। यदि बृहस्पति के द्वारा प्रनाडित मार्ग में मंगल गमन बरे तो सार्वजनिक भय होता है तथा अधिकतर मनुष्यों को भय होता है ।। ||8|| भौमेनापि हान गाई यदा सौरिः प्रपद्यते। तदाऽपि शूद्रचौराणामन्यं कुरुते नृणाम् ॥119॥ मंगल के द्वारा प्रताडित मार्ग में गनेश्वर गमन करे तो शुद्र और नोरों का। अकल्याण होता है ।।।।9।। सोरेण तु हतं मार्ग 'वाचस्पतिः प्रपद्यते। भयं सर्वजनानां तु करोति बहुधा तदा ।।120॥ I. बा
SR No.090073
Book TitleBhadrabahu Sanhita Part 1
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages607
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size13 MB
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