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भद्रबाहुसंहिता
यदि श्वेतग्रह पीत, रत्रत अथवा कृष्ण हो तो जाति के वर्गानुसार विजय प्राप्त कराता है अर्थात् रक्त होने पर क्षत्रियों की, पीत होने पर वैश्यों की और कृष्णवर्ण होने पर शूद्रों की विजय होती है । मिश्रितवर्ण होने से वर्णसंकरों की विजय होती है ।। ।। ] ||
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उत्पाता विविधा ये तु ग्रहाऽवाताश्च दारुणाः । उत्तराः सर्वभूतानां दक्षिणा ' मृगपक्षिणाम् ||1020
अनेक प्रकार के उत्पात होने हैं, इनमें ग्रघात - ग्रहयुद्ध उत्पात अत्यन्त दाण हैं । उत्तर दिशा का पहचात समस्त प्राणियों को कष्टप्रद होता है और दक्षिण का ग्रहात केवल पशु-पक्षियों को कष्ट देता है || 102 ||
करंक शोणितं मांसं विद्युतश्च भयं वदेत् । दुभिक्षं जनमारि च शीघ्रमाख्यान्त्युपस्थितम् 1103॥
अस्थिपंजर, रक्त, मांग और बिजली का उत्पात भय की सूचना देता है तथा जहाँ यह उत्पात हो वहाँ दुर्भिक्ष और जनमारी शीघ्र ही फैल जाती है || 103 || शब्देन महता भूमिर्यदा रसति कम्पते । सेनापतिरमात्यश्च राजा राष्ट्र च पीड्यते ॥11041
अकारण भयंकर सब्द के द्वारा जब पृथ्वी काँपने लगे तथा सर्वत्र शोरगुल व्याप्त हो जाय तो मनापति मन्त्री राजा और राष्ट्र को पीड़ा होती है || 04
फले फलं यदा किंचित् पुण्ये पुष्पं च दृश्यते । गर्भाः पतन्ति नारीषां युवराजा च वध्यते ॥13051
यदि फल में फल और गुप्प में पुण दिखलाई पड़े तो स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं तथा युवराज का वध होता है |110511
नर्तनं जल्पनं हासमुत्कीलननिमीलने ।
"देवाः यत्र प्रकुर्वन्ति तत्र विन्द्यान्महद्भयम् ॥106॥
जहाँ देवों द्वारा नाचना, बोलना, हँसना, कोलना और पलक झपकना आदि क्रियाएं की जायें; वहाँ अत्यन्त भय होता है ।
पिशाचा यत्र दृश्यन्ते देशेषु नगरेषु वा ।
अन्यराजो भवेत्तव प्रजानां च महद्भयम् 11071
1. मुग गिणाम् भुए। 2. दिवा
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