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भद्रबाहुसंहिता
यदि चन्द्रमा या वरुण में कोई उत्पात दिखलाई पड़े तो सिन्धु देश, सौवीर देश, सौराष्ट्र -- गुजरात और वत्सभूमि में मरण होता है। भोजन सामग्री में भय रहता है और राजा का गरण पूर्व में ही हो जाता है । पाँच महीने के उपरान्त वहाँ घोर भय का संचार होता है अर्थात भय व्याप्त होता है 464-6511
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रुद्र े च वरुणे कश्चिदुत्पातः समुदीयते ।
सप्तपक्षं भयं विन्द्याद् ब्राह्मणानां न संशय: 16611
शिवजी और वरुणदेव की प्रतिमा में यदि किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो वहाँ ब्राह्मणों के लिए सात पक्ष अर्थात् तीन महीना पन्द्रह दिन) का भय समझना चाहिए, इसमें किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं है ॥66॥ इन्द्रस्य प्रतिमायां तु यद्युत्पातः प्रदृश्यते ।
संग्रामे त्रिषु मासेषु राज्ञः सेनापतेर्वत्र: 1167
यदि इन्द्र की प्रतिमा में कोई भी उत्पात दिखलाई पड़े तो तीन महीने में संग्राम होता है और राजा या सेनापति का बध होता है ||67 ॥
यद्युत्पातो बलन्देवे तस्योपकरणेषु च ।
महाराष्ट्रान् महायोद्धान् सप्तमासान् प्रपीडयेत् ॥68॥
यदि बनदेव की प्रनिया या उसके उपकरणों – छत्र, चमर आदि में किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो सात महीनों तक महाराष्ट्र के महान् योद्धाओं को पीड़ा होती है ||४||
वासुदेवे यत्पातस्तस्योपकरणेषु च ।
चक्रारूढाः प्रजा ज्ञेयाश्चतुर्मासान् वधो नृपे ||65
वासुदेव की प्रतिमा उसके उपकरणों में किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो प्रजा चकारूद - पड्यन्त्र में तल्लीन रहती है और चार महीनों में राजा का वध होता है 69 ||
प्रद्युम्ने वा उत्पातो गणिकानां भयावहः । 'कुशीलानां च द्रष्टव्यं भयं चेद्वाऽष्टमासिकम् ॥701
प्रद्युम्न की मूर्ति में किसी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो वेश्याओं के लिए अत्यन्त भय कारक होता है और कुगील व्यक्ति के लिए आठ महीनों तक भय बना रहता है ॥7॥
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