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पंचदशोऽध्यायः
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क्षुधामरणरोगेभ्यश्चतुर्भागे भविष्यति ।
एषु देशेषु चान्येषु भद्रबाहुवचो यथा ॥37॥ यदि पंचम मण्डल में शु* 4) उदय या असा हा ता अनावृष्टि, दुनिया और भय उत्पन्न करता है । धन-धान्य की वृद्धि चाहने वानों को सभी श्वेत पदार्थ और अनाज खरीद लेना चाहिए और निर्ग्रन्थ साधुनों को इन देशों का त्याग कर देना चाहिए। स्त्री राज्य, ताम्रकर्ण, कर्णाटक, आमाम, बालीयः, विदर्भ, मत्स्य, काशी, स्फीत देश, गमदेश, सूरसेन, वत्सराज इत्यादि देशों में क्षुधा, मग्ण, रोग, दुभिक्ष आदि बा कष्ट होगा, इस प्रकार का भद्रबाह स्वामी का वचन है।।33-37।।
यदा चान्येऽभिगच्छन्ति तत्रस्थं भार्गव ग्रहाः। सौराष्ट्रा: सिन्धुसौवीराः मन्तिसाराश्च साधवः ॥3811 'अनार्या: कयौधेयाः सांदृष्टार्जुननायका:।
पोड्यन्ते तेषु देशेषु म्लेच्छो वै म्रियते नृपः ॥19॥ यदि पंचम मंडल में शुत्रः अन्य ग्रहों के द्वारा अभिभूत हो तो गौराष्ट्र, सिन्धु देश, सौवीर देग, मन्तिसा र देश, माधुजन, अनार्ग (या आगतं ) दग, कच्छ देश, सन्धि के योग्य हैं । पूर्व दिगा ये ग्वाभी भी सन्धिमारने के योग्य है । इन देशों से पीड़ा होती है तथा म्लेच्छ नप का मरण होता है ।। 38-39।।
यदा तु मण्डले यष्ठे कर्यादस्तमथोदयम् । शुकस्तदा प्रकुर्वीत भयानि तत्र शुद्भयम् ॥40॥ रसाः पाञ्चालबालीका गन्धाराश्च वोलकाः । विदर्भाश्च दशाश्च पीयन्ते नात्र संशयः ।।4।। द्विगुणं धान्यमर्पण नोत्तरं वर्षयेत् तदा।
क्षतैः शस्त्र च व्याधि च मूर्छयत् तादृशेन यत् ॥42।। यदि शुक्र छठे मंडल में अस्त या उदय को प्राप्त हो तो साधारण भयों को उत्पन्न करता है तथा यहाँ क्षुधा का भय होता है। वत्म, पांचाल, वाह्रीका, गान्धार, गबोलय, विदर्भ, दशाणं निस्सन्देह पीड़ा को प्राप्त होते हैं। अनाज का भाष दूना महंगा हो जाता है तथा उत्तरार्ध चातुर्मास में वर्षा भी नहीं होती है। शस्त्र, घात और मूर्जा इस प्रकार के शुक्र में होती है ।।40-4211
1. सुगप्दा: मु०। ५. आनतंकनया: गाम्बाठाश्चाजना जमाः । मु० ।
ग प्रिय ते ग | 4. वा । 5. गलिया, गुरु ।
3. प्ले