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चतुर्दशोऽध्यायः
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यदात्युष्णं भवेच्छोते शीतमुष्णे तथा ऋतौ ।
तदा तु नवमे मासे दशमे वा भयं भवेत् ।।311 यदि शीत ऋतु में अधिक गर्मी पड़े और नीम प्रत में कड़ाके की सर्दी । पड़े तो उक्त घटना के नौ महीने या दग महीने के उपरान्त महान भय होता । है।
सप्ताहमष्ट रालं वा नवरात्रं दशाह्निकम् ।
यदा निपतते वर्ष प्रधानस्य वधाय तत् ॥4॥ यदि वर्षा सात दिन और आट रात अथवा नौ गवि और दश दिन तक हो तो प्रधान-राजा या मन्त्री का बध होता है । तात्पर्य यह है कि वार्या लगातार मान दिन और पाठ रात अर्थात दिन में पारा होगर आरती गत में मम लोग नौ रात और दम दिन अर्थान् । गत मे आरम होकर द प दिन समाप्त हो तो प्रधान का वध होता हे ।।411
पक्षिणश्च यदा मत्ताः पशवश्च पृग्विधाः ।
विपर्ययेण संसक्ता विन्द्याज्जनपदे भयम् ।।5।। यदि पक्षी मतपागल और पशु भिन्न स्वभाव के हो जाये तथा विपर्ययविपरीत जाति, गुणग, धर्म वालों का संयोग हो अर्थात् पशु-पक्षियों से मिलें, पक्षी पशुओं से अथवा गाय आदि पशु भी भिन्न मत्रभाव वालों ग संयोग करें तो राष्ट्र } में भय – आतंक व्याप्त हो जाता है ।।5।।
आरण्या ग्राममायान्ति बने गच्छन्ति नागराः । रुदन्ति चाथ जल्पन्ति तदापायाय कल्पते ।।6। "अष्टादशसु मासेषु तथा सप्तदशसु च।
राजा च म्रियते तत्र भयं रोगश्च जायते ॥17॥ जंगली पशु गांव में आयें और ग्रामीण पशु जंगल को जायें, सदन करें और घाब्द करें तो जनपद का पाप का उदय ममझना चाहिए। इस पाप के फल से . अठारह महीनों में या मबह महीनों में राजा का भरण होता है और उस जनपद में भय एवं रोग आदि उत्पन्न होते हैं। अर्थात उस जनपद में राभी प्रकार का कष्ट व्याप्त हो जाता है ।। 6-7।।
| वदा गवाय म. 12. प्रा.शम्य गाय 41 -दशम्य च।