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प्रस्तावना
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कार्यपटु और सुखी होता है। जज या मजिस्ट्रेट का पद उसे मिलता है। जिसके मणिबन्ध में धमाला की एक ही धारा दिखाई पड़े वह पुरुष धनी होता है । सभी लोग उसकी प्रशंसा करते है । जिस व्यक्ति के हाथ को तीनों मणिबन्ध रेखाएँ स्पष्ट और सरल हों, वह व्यक्ति जगन्मान्य, पूज्य और प्रतिष्ठित होता है ।
तर्जनी और मध्यमांगुली के बीच से निकलकर अनामिका और कनिष्ठा के मध्यस्थल तक जाने वाली रेला शुक्रबन्धिनी कहलाती है । इस रेखा के भग्न या बहुशाखा विशिष्ट होने पर मुर्च्छा रोग होता है। इस रेखा के स्थान-स्थान में भग्न होने से मनुष्य लम्पट होता है। शुबन्धिनी रेखा के होने से मनुष्य कभी विषाद में मग्न रहता है और कभी आनन्द में इस रेखा के बृहस्पति स्थान से अर्द्धचन्द्रर हो सीधी से व्यक्ति ऐन्द्रजालिक होता
है और साहित्यिक भी होता है।
रेखाओं के खतवर्ण होने से मनुष्य आमोदप्रिय, उग्र स्वभाव; रक्तवर्ण में कुछ कालिमा हो अर्थात् रक्तवर्ण रखता हो तो प्रतिहिसारायण, गठ, क्रोधी होता है । जिसकी रेखा पीली होती है, वह उच्चाभिलाषी, प्रतिहिमापरायण तथा कर्मठ होता है । पाण्डुवर्ण की रेखाएँ होने से स्त्री स्वभाव का व्यक्ति होता है ।
ग्रहों के स्थानों का वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि तर्जनी मूल में गुरु का स्थान, मध्यमा अंगुली के गुल में शनि का स्थान, अनामिका के मूल देश में रवि स्थान, कनिष्ठा के मूल में बुध स्थान तथा अंगूठे के मूल देश में शुक्र स्थान है । मंगल के दो स्थान हैं --- एक तर्जनी और अंगूठे के बीच में परेखा के समाप्ति स्थान के नीचे और दूसरा बुध स्थान के नीचे और चन्द्रस्थान के ऊपर ऊर्ध्व रेखा और मातृ रेखा के नीचे वाले स्थान में मंगल स्थान के नीचे से मणिबन्ध के ऊपर तक करतल के पार्श्व भाग के स्थान को चन्द्रस्थान कहते हैं ।
सूर्य के स्थान के ऊँचा होने से व्यक्ति चंचल होता है, संगीत तथा अन्यान्य कलाविशारद और नये विषयों का आविष्कारक होता है। रत्रि और बुध का स्थान उच्च होने से व्यक्ति विश, शास्त्र विशारद और सुवक्ता होता है । अत्युच्च होने से वह अपव्ययी, बिलामी, अर्थलोभी और तार्किक होता है। रवि का स्थान ऊंचा होने से व्यक्ति मध्यमाकृति, लम्बे केश, बड़े-बड़े नेत्र, किञ्चित् लम्बा गुखमण्डल, सुन्दर शरीर और अंगुलियाँ लम्बी होती हैं। रवि के स्थान में कोई रेखा न होने पर व्यक्ति को नाना दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है । जिसके हाथ का उच्च सूर्य क्षेत्र बुध क्षेत्र की ओर झुक रहा हो, तो उसका स्वभाव नम्र होता है । व्यापार में उन्नति करने वाला अर्थशास्त्र का अपूर्व विद्वान् एवं कलाप्रिय होता है। जिसके हाथ का उच्च सूर्यक्षेत्र शनिक्षेत्र की ओर झुका हुआ हो, वह धनाढ्य और अनेक प्रकार के भोग-विलासों में रत रहता है । सूर्यक्षेत्र यदि गुरुक्षेत्र की ओर झुका हुआ हो तो व्यक्ति दयालु, गुणी, न्यायप्रिय, सत्यवादी,