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त्रयोदशोऽध्यायः
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मत्ता यत्र विपद्यन्ते न माद्यन्ते च योजिता: ।
नागास्तत्र वधो राज्ञो महाऽमात्यस्य वा भवेत् ॥16॥ जहाँ मदोन्मत्त हाथी विपत्ति को प्राप्त हों अथवा मत हाथियों की योजना में करने पर भी वे मद को प्राप्त न हों तो उस समय वहाँ मजा या महामात्य: महामन्त्री का वध होता है ।116911
यदा राजा निवेशेत भूमौ कण्टकसंकुले।
विषमे सिकताकोणे सेनापतिवधो ध्र वम् 1170 जब राजा कंटकाकीर्ण, विपम, बालु काचुरत भूमि में सना का निवास = करावे- सैन्य शिविर स्थापित करे तो मनापति र बध या निर्देश समझना चाहिए ।।17011
श्मशानगरियरजःको पनपनौ।
शुकवृक्षसमाकोणें निविष्टो' वधमीयते ॥17॥ श्मशान भूमि की हड्डियां जहां हो, धूलि युक्त, दग्ध वगरपति और शुष्क ___ वृक्ष वाली भूमि में संन्य शिविर की स्थापना की जाय तो वध होता है ।।17 |||
कोविदारसमाकीर्णे श्लेष्मान्तकमहाद्र मे।
पिलू-कालनिविष्टस्य प्राप्नुयाच्च चिराद् वधम् ।।172।। लाल कचनार वृक्ष से युक्त तथा गौद वाने व वृक्षों से युक्त और पीलू के वृक्ष के स्थान में सैन्य शिविर स्थापित किया जाये तो विलम्ब से वध होता है ।।1720
असारवृक्षभूयिष्ठे पाषाणतणकुत्सिते ।
देवतायतनाक्रान्ते निविष्टो बधमाप्नुयात् ॥1731 रेडी के अधिक वृक्ष वाले स्थान में अथवा पापाण-पत्थर और सिनने वाले स्थान में, कुत्सित-- -ऊंची-नीत्री खराब भूमि में, अथवा देवमन्दिर' की भूमि में यदि संन्य शिविर हो तो वध प्राप्त होता है ।।। 7311
अमनोज्ञैः फलैः पुष्पः पापपक्षिसमन्वित।
अधोमाग निविष्टश्च युद्धमिच्छति पार्थिवः ।।17411 कुरूप फल, गुग्ध से युक्त तथा पाणी -- मासाहारी पक्षियों से युक्त अक्षा के
I. निविशी मु० ।