________________
त्रयोदशोऽध्यायः
183
-
-h
i
t
-i------
--
---
निमित्त तीन प्रकार के हैं-आकाश त पतित, भूमि पर दिखाई देने वाले और शरीर से उत्पन्न चेष्टाएं ।।45।।
'पतेन्निम्ने यशाप्यम्भो सेतु बन्धे च तिष्ठति।
'चेतो निम्ने तथा तत्त्वं तद्विद्यादफलात्मकम् ।।46॥ जिस प्रकार जल नीचे की ओर जाता है, पर पुल बाँध देने पर मन जाता है, उसी प्रकार मानव का मन भी निम्न बातों की ओर जाता है, किन्तु इन बातों को अफलात्मक...-फल रहित जानना चाहिए ।।46।।
"बहिरंगाश्च जायन्ते अन्तरंगाच्च चिन्तितम् ।
तज्ज्ञ: शुभाऽशुभं ब्र यानिमित्तज्ञानकोविदः ।।47।। अन्तरंग में विचार करने पर ही बहिरंग में विकृति आती है। अतः निमित्त ज्ञान में प्रवीण व्यक्ति को शुभाशुभ निमित्त का वर्णन करना चाहिए । तात्पर्य यह है कि वाह्य प्रकृति में विकार अन्तरंग कारणों से ही होता है, अतः बाह्य निर्मामलों में क्रिया वर्णन सत्य सिद्ध होता है ॥47।।
सुनिमित्तेन संयुक्तस्तत्परः साधवृत्तयः।
अदीनमनसंकल्पो भव्यादि लक्षयेद् बुधः ।।48॥ सुनिमित्तों को जानकर, साधु आचरण वाला व्यक्ति, मन को दृढ करता हुआ, शुभाशुभ फल का निरूपण कारे 11481!
कजरस्तु तदा नर्देत् ज्वलमाने हताशने।
स्निग्धदेशे ससम्भ्रान्तो राज्ञां विजयमावत् ॥4॥ स्निग्धा देश में यकायक अग्नि प्रज्वलित हो और हाथी म अंगा नारे ता गजा की विजय होती है ।।491
एवं हयवृषाश्चापि सिंहव्याघ्राश्च सस्वराः ।
नर्दयन्ति तु "सैन्यानि तदा राजा प्रमर्दति ॥5 इसी प्रकार घोड़ा, बैल, सिंह, व्याघ्र स्वरपूर्वक गुन्दर नाद या गजन करें तो राजा सेना को नुचलता है ।। 501
1. तथवा यथा निम्ने सेतुबन्धं च भाठा .. 12.45 H | 3 प॥ | 4. विन्द्यात् बाफनामा मु। 5. यह दानापमान मन नलाग । 6. विधिम् म.। 7. नदेधूनमा मु.। 8. frieमन iit _ । 9. गुस्थर: मु.। 10. सौम्बानि म ।