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भद्रबाहुसंहिता
ईशान और पूर्व दिशा में गर्भधारण करते हैं। जिस समय मेघ गर्भधारण करते : हैं उस समय दिशाएँ शान्त हो जाती हैं, पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ने लगता । है । अगहन मास में जिस तिथि को नेघ सन्ध्या की अरुणिमा से अनुरक्त और मंडलाकार होते हैं, उसी तिथि को उनकी गर्भ धारण की क्रिया समझनी चाहिए। अगहन मास में जिस तिथि को प्रबल वायु चले, लाल-लाल बादल आच्छादित हों, चन्द्र और सूर्य की किरणें तुषार के समान कलुषित और शीतल हों तो छिन्न-भिन्न समझना चाहिए ! गर्भधारण के उपर्युक्त चारों मासों के अतिरिक्त । ज्येष्ट मास भी माना गया है । ज्येष्ठ में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से चार दिनों तक गर्भ धारण की क्रिया होती है। यदि ये चारों दिन एक समान हों तो सुखदापी । होते हैं, तथा गर्भधारण किया बहुत उत्तम होती है। यदि इन दिनों में एक दिन : जल बरसे, एक दिन पवन चले, एक दिन तेज धूप पड़े और एक दिन आंधी चले तो निश्चयतः गर्भ शुभ नहीं होता। ज्येष्ठमास ब गर्भ मात्र 89 दिनों में । बरसता है । अगहन वा गर्भ दिन में वर्षा करता है; किन्तु वास्तविक गर्भ अगहन । पौर और माघ का ही होता है। अगहन के गर्भ द्वारा आषाढ़ में वर्षा, पोप के गर्भ से श्रावण में, माघ के गर्भ से भाद्राद और फाल्गन के गर्भ से आश्विन में जलबुष्टि होती है। ___ फाल्गुन में तीक्ष्ण पवन चलने रो, रिनन्ध बादलों के एकत्र होने से. सूर्य के अग्नि समान गिल और ताम्रवर्ण होने में गर्भ क्षीण होता है । चत्र में सभी गर्भ पवन, मेघ, वर्षा और परिबंध युक्त होने में शुभ होते हैं। बैशाख में मेष, वायु, जल और बिजली की चमक एवं पकड़ाहट के होने से गर्भ की पुष्टि होती है। उल्का, बच, धलि, दिग्दाह, भूकम्प, गन्धर्धनगर, कीलक, केतु, ग्रहयुद्ध, निर्धात, परिज, इन्धनुष, राहुदर्शन, मधिरादि का बर्षण आदि के होने से गर्भ का । नाश होता है। पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, पूर्वागामा, उन रापाढ़ा और
रोहिणी नक्षत्र में धारण किया गया गर्भ पुष्ट होता है। इन पांच नक्षत्रों में गर्भ धारण दरना शुभ माना जाता है तथा मेघ प्रायः अन्हीं नक्षत्रा में गर्भ धारण । करते भी हैं । अगहन महीने में जब ये नक्षत्र हों, उन दिनों गर्भ वाल का निरीक्षण करना चाहिए 1 पोप, भाप और फाल्गुन में भी इन्हीं नक्षत्रों का मेघगर्भ शुभ होता है, किन्तु शतभिषा, आश्लपा, आना और स्वाती नक्षत्र में भी गर्भ धारण की क्रिया होती है। अगहन में बैशाख माग तक छ: महीनों में गर्भ धारण करने से 8, 6, 16, 24, 20 और 3 दिन तक निरन्तर वर्षा होती है। क्रूरग्रहयुक्त । होने पर समस्त गर्भ में ओले, अशनि और मछली की वर्षा होती है। यदि गर्भ समय में अकारण ही गार वर्षा हो तो गर्भ मा रतुलन हो जाता है।
ममें पांच प्रकार के निमित्ता स पुष्ट होता है । जो पुष्टगर्भ है, वह सौ योजन
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