________________
166
भद्रबाहुसंहिता
करते हैं तथा फसल भी उत्तम होती है ।।19।।
वायव्यामथ वारुण्यां ये गर्भा सदन्ति च ।
"ते वर्ष मध्यमं दद्युः सस्यसम्पदमेव च ॥20॥ वायव्य कोण और पश्चिम दिशा में जो मेघ मर्भ धारण करते हैं, उनसे मध्यम जल की वर्षा होती है और अनाज की फसल उत्तम होती है ॥2011
शिष्टं सुभिक्षं विजेयं जघन्या नात्र संशयः ।
मन्दगाश्च घना वा च सर्वतश्च सुपूजिता: ॥21॥ दक्षिण दिशा में मेघ गर्भ धारण करें तो सामान्यतः शिष्टता, सुभिक्ष समझना चाहिए, इसमें सन्देह नहीं है तथा इस प्रकार के मन्द गति वाले मेघ सर्वत्र पूजे भी जाते हैं ।।214
भारुत: तत्प्रभवा: गर्भा धूयन्ते मारुतेन च।
धातो गर्भाश्च वर्षञ्च करोन्यपकरोति च ॥22।। वायु से उत्पन्न गर्भ वायु के द्वारा ही आन्दोलित किये जाते हैं तथा वायु चलता है, बर्षा करता है और गर्भ की क्षति भी होती है ।।22।।
कृष्णा नीलाश्च रक्ताश्च पीता: शुक्लाश्च सर्वतः ।
व्यामिश्राश्चापि ये गर्भाः स्निग्धाः सर्वत्र पूजिता: ।।23।। कृष्ण, नील, रक्त, पीत, शुक्ल, मिश्विवर्ण तथा स्निग्ध गर्भ सभी जगह पूज्य होते है शुभ होते हैं ।। 2311
अप्सराणां तु सदृशाः पक्षिणां जलचारिणाम् ।
वक्षपर्वतसंस्थाना गर्भाः सर्वत्र पूजिता: ।।24।। देवांगनाओं के सदृश, जलचर पक्षियों में समान, वृक्ष और पर्वत के आकार वाले गर्भ सर्वन पूज्य हैं-- शुभ हूँ ।। 2411
वापीकूपतडागाश्च' नद्यश्चापि मुहुर्मुहुः ।
पर्यन्ते तादृशंर्गभस्तोयक्लिन्ना नदीवहैः ।।2511 इस प्रकार के गर्भ से बावड़ी, कुंआ, तालाब, नदी आदि जल से लबालब भर आते हैं तथा इस प्रकार जल कई बार य रसता है ।।25।।
1. बायया (यय1) तु । 2. मध्य वर्ग 4 तनामन गु० । 5 धाव है: गे!
: म. ! 3. पातु गम
भु।।