________________
एकादशोऽध्यायः
161
शून्य शेष में पीड़ा समझनी चाहिए। ____ अन्य नियम--विक्रम संवत् की संख्या को तीन से गुणा कर पाँच जोड़ना चाहिए । योगफल में सात का भाग देने से शेष क्रमानुसार फल जानना । 3 और 5 शेष में दुर्भिक्ष, शून्य में महाकाल और 1, 2, 4, 6 शेष में सुभिक्ष होता है। ___ उदाहरण-विक्रम संवत् 2048, इसे तीन से गुणा किया; 2048X3--- 6144, 6144 + 52-6149, इसमें 7 का भाग दिया, 6149-:-74-878 लब्धि, शेष 3 रहा । इसका फल दुर्भिक्ष हुआ।
प्रभवादि संवत्सरबोधक चक्र
संख्या | संवत्सर । संख्या संवत्सर । संख्या, संवत्सर संख्या
संवत्सर
47||
50 | नल
शोभन
52
| प्रभव 16 चित्रभानु 31 हेमलम्बी 46 परिधावी विभव सुभानु विलम्बी प्रसादी शुल्क तारण विकारी आनन्द
प्रमोद पार्थिव | शार्वरी राक्षस 5 | प्रजापति | 20 व्यय प्लव अंगिरा। सर्वजित् ।
शुभकृत पिमल श्रीमुख सर्वधारी
मालयुक्त भाव विरोधी
| क्रोधी 53 | सिद्धार्थी युवा
विकृति स्वर
परायव दुर्मति ईश्वर नन्दन
प्लबंग |
दुन्दुभि बहुधान्य 27 विजय कीलक । 57 रुधिरोद्गारी प्रमाथी
। सौम्य रयताक्षी विक्रम
44 साधारण ऋोधन 45 विरोधकृत 60
54 रोल
धाता
जय
मन्मथ