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एकादशोऽध्याय:
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नीरब दिशा में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो राजवृद्धि का फलादेश समझना चाहिए ।।2011
यदा चाभ्र धमिधं सघनैः सबलाहकम् ।
गन्धर्वनगरं स्निग्धं विन्द्यादुदकसंप्लवम् ।।21॥ यदि शुभ मेघों से युक्त विद्यत् सहित स्निग्ध गन्धर्व नगर दिखलाई पड़े तो जल की बाढ़ आती है----वर्षा अधिक होती है और नदियों में याद आती है; सर्वत्र जल ही जल दिखलाई पड़ता है । 2 ।।।
सध्वजं सपताक वा गन्धर्वनगरं भवेत् ।
दीप्तां दिशं समाश्रित्य नियतं राजमत्युदम् ॥22॥ यदि ध्वजा और ताना शहित गन्धर्व नगर पूर्व दिशा में दिखलाई पड़े तो नियमित रूप मे सजा की मृत्यु होती हैं ।।2 211
विदिक्ष 'चापि सर्वास गन्धर्वनगरं यदा।
संकरः सर्ववर्शानां तदा भवति दारुणः ॥23॥ यदि सभी विदिशाओं में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो सभी वर्गों का अत्यन्त संकर-सम्मिश्रण होता है ।।23।।
द्विवर्ण वा त्रिवणं वा गर्वनगरं "भवेत् ।
चातुर्वयं मयं भेदं तदानापि बिनिदिशेत् ॥2411 यदि दो रंग, तीन रंग या चार रंग का गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो भी उक्त प्रकार का ही फल घटित होता है ।।24।
अनेकवर्णसंस्थानं गन्धर्वनगरं यदा । क्षुभ्यन्ते तत्र राष्ट्राणि प्रामाश्च नगराणि च ।।25।। सङग्रामाश्चापि जायन्ते' मांसशोणितकदमा: ।
भएतश्च लक्षणैर्युक्तं भद्रबाहुवचो यथा ॥26॥ यदि अनेक वर्ण आकार का मन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो गगा, ग्राम और राष्ट्र में ओश उत्पन्न होता है, युद्ध होते हैं और स्थान मांस तथा २ को कीचड़ से भर जाते हैं । रक्त प्रकार के निति से अनेक प्रकार का उत्पात होता है, इस प्रकार का भद्रबाहु स्वामी का बबन है।! 25-26।।
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1. गु- म० । 2. विद्युः ।। 3 . 4. 6. भवेत् । । ?. अनबन म । 8.
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