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भद्रबाहुसंहिता
संग्रामाश्चानुक्र्धन्ते शिल्पकानां सुखोत्तमम् । श्रावणाश्वयुजे मासि तथा कातिकमेव च ॥42।। अपग्रहं विजानीयान्मासि मासि दशाहिकम्।
चौराश्च बलवन्त: स्युरुत्पद्यन्ते च पार्थिवाः ॥43॥ हस्त नक्षत्र में जब प्रथम वर्षा होती है तो 85 आढक प्रमाण जल उस वर्ष बरसता है। निम्न स्थानों को वापियां-वावड़ियाँ पंचवर्गात्मक हो जाती हैं। इस वर्ष में युद्ध की वृद्धि होती है, शिल्पियों को उत्तम सुख प्राप्त होता है। श्रावण, आश्विन और कात्तिक इन तीनों महीनों में से प्रत्येक महीने में 10 दिन तक अपग्रह– अनिष्ट समझना चाहिए । चोर, गेना-योद्धा और नपतियों की उत्पत्ति होती है अर्थात् उस वर्ष चोरों की, सैनिकों की और नपतियों को कार्यसिद्धि होती है।।41-430
द्वात्रिशमाढकानि स्युश्चित्रायां च प्रवर्षणम्। चिन्न विन्द्यात् तदा सस्यं चित्रं वर्ष प्रवर्षति ॥44।। निम्नेषु वापयेद बीजं स्थलेषु परिवर्जयेत् ।
मध्यमं तं विजानश्याद् भद्रबाहुवचो यथा ॥45॥ चित्रा नक्षत्र में जिस वर्ष प्रथम वर्षा होती है, उस वर्ष 32 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है । अनाज की उत्पत्ति भी विचित्र रूप से होती है और यह वर्ष भी विचित्र ही होता है । इस वर्ग निम्न स्थानों --आर्द्र स्थानों में बीज बोना चाहिए, ऊंचे स्थलों में नहीं, क्योंकि यह वर्ष मध्यम होता है, ऐशा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।44-4541
द्वात्रिंशदाढकानि स्युः स्वाती स्याच्चेत प्रवर्षणम्।
"वायुरग्निरनावृष्टिः मासमेकं तु वर्षति ।।46॥ स्वाति नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो 32 आढक प्रमाण बुष्टि होती है। इस वर्ष में एक ही महीने तक जल की वर्षा होती है । वायु चलता है, अग्नि बरसती है तथा अनावृष्टि होती है ।।4611
विशाखासु विजानीयात् खारोमेकां न संशयः। सस्यं निष्पद्यते चापि वाणिज्यं पीडयते तदा 147
1. यूजी म. | 2. मासौ गु० । 3. मासे गासे मु०। 4. वर्षण यदा मुः। 5. बिनिदिशेत् 6. वायुवष्टिाना वग्रिमासमेव न वर्षनि म । 7. साधिराशय गु !