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दशमोऽध्यायः
125 व्यागा तीसपारनेल पर गमागे गजः ।
सस्यं कनिष्ठ विज्ञ यं प्रजाः सर्वाश्च दुखिताः ॥22॥ जब प्रथम वर्षा का प्रारम्भ भरणी नक्षत्र में होता है, उस समय वर्ष भर में निस्सन्देह उन्नीस आहक प्रमाण जल की वर्षा होती है। सर्प और सरीसप-. दुमुही, विभिन्न जातियों के सर्पादि, मरण, व्याधि, रोग आदि उत्पन्न होते हैं । अनाज भी निम्न कोटि का उत्पन्न होता है और प्रजा को सभी प्रकार से कष्ट उठाने पड़ते हैं ।।21-221
आढकान्येकपंचाशत् कृत्तिकासु समादिशेत् । तदा त्वपग्रहो जयः सप्तविंशतिरात्रकः ॥23॥ द्वैमासिकस्तदा देवश्चित्रं सस्यमुपद्रवम् ।
निम्नेषु वापयेद् बीजं भयमग्नेविनिदिशेत् ॥24॥ यदि प्रथम वर्षा ऋतिका नक्षत्र में हो तो 51 आठया प्रमाण व समझनी चाहिए और 27 दिनों के बाद अनिष्ट समझना चाहिए । इस वर्ष मेघ दो महीने तक ही बरसते हैं, अनाज की उत्पत्ति में विघ्न आते हैं, अत: निम्न स्थानों में वीज बोना अच्छा होता है । इस वर्ष अग्नि-भय जी कहा है ।।23-2411
आढकान्येकविंशच्च' रोहिण्यामभिवति । अपग्रहं निजानीयात सर्व मेकादशाहिकाम् ।।2।। "सुभिक्ष क्षममारोग्यं नैऋतीयं बहूदकम् ।
स्थलेषु वापयेद् बीजं राज्ञो विजयमादिशेत् ॥26॥ यदि प्रथम बर्षा रोहिणी नक्षत्र में हो तो 91 आढक प्रगाणा उस वर्ष जल बरसता है और 11 दिनों के बाद अपग्रह ...अनिष्ट होता है । उस वर्ष क्षेम, सभिक्ष और आरोग्य समझना चाहिए । नैनत्य दिशा की ओर सवाल उठकर अधिक जल की वर्षा करते हैं । स्थल में बीज बोने पर भी अच्छी फसल उत्पन्न होती है तथा राजा की विजय की सूचना भी समझनी चाहिए ।। 25-26।।
आढकान्येकनवत्ति: सौम्ये प्रवर्षते यदा। 'अपग्रहं तदा विन्द्यात् सर्वमेकादशाहिकम् ॥27॥ महामात्याश्च पोड्यन्ते क्षधा व्याधिश्च जायते ।
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं दष्ट्रिण: प्रबलास्तदा ।।28।। 1. मत्युव्याधितो वियिधराजः म० A. 2. कनिष्ठक ज्ञेयं । 3. मेधः मु० । 4. न्यायालय 5. विनिदिशेत म.। 6. मुद्रित एति में 'क्षम गभिक्षमाग्य' पाट मिलना है। 7. मदाऽयपग्रह विन्दात् बासमणि चतुर्दश. म. । 8. बदन्याधि विनिदिशेन् 19. गनिता व विज्ञेयं दंष्ट्रिण प्रबलास्तथा ।