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अष्टमोऽध्यायः
___45 रक्तवर्णो यदा मेघः शान्तायां दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मन्तगतिश्चापि तदा विन्द्याज्जलं शुभम् ॥4 लाल वर्ण के तथा स्निग्ध और मन्द गति वाले मेघ पश्चिम दिशा में दिपलाई ' दें तो अच्छी जल-वृष्टि होती है ।
शक्लवर्णो यदा मेघः शान्तायां दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मन्दगतिश्चापि निवृत्त: स जलावहः ॥5॥ श्वेत वर्ण के स्निग्ध और मन्द गति वाले पश्चिम दिशा में दिखाई दें । जिर न उन में पाया है उतनी हार के वा हो जाते हैं ।।5।।
स्निग्धाः सर्वेषु वर्णेषु स्वां दिशं संसता यदा।
स्वर्णविजयं कुर्युदिक्षु शान्तासु ये स्थिता: ॥6॥ यदि पश्चिम दिशा में स्थित मेध मिनग्ध हो तो मय वर्णों की विजय करत हैं और अपने-अपने वर्ण के अनुसार अपनी-अपनी दिणा में विमान मंच रिपत हों तो वर्ण के अनमा जय करते हैं ।6।।
जातिसादाण क्षत्रिय राजा जातिवर्ण श्वेत रक्त बीत cor जातिदिगा उत्तर पूर्व
दक्षिण पश्चिम यथास्थितं शुभं 'मेघमनुपश्यन्तिः पक्षिण;"।
जलाशयः जलधरास्तदा विन्द्याज्जलं शुभम् ॥7॥ यदि शुभ मेघ पक्षिगण और जलाशय का दिग्बा लाई में तो अच्छी वर्षा होती है और यह वर्पा फसल को अधिक लाभ पहुंचाती है ।।7।
स्निग्धवर्णाश्च ते (ये) मेघा स्निग्धाश्च ते (ये) सदा !
मन्दगा: सुमुहूर्ताश्च य (ते) सर्वत्र जलावहाः ॥8॥ यदि स्निग्ध .. गौम्य, मृदुल गब्द बाले, मन्द गति वाल और उनम गृहात वाले भेघ दिबलाई पहें तो सर्वत्र वर्षा होती है ।।8।।
सुगन्धगन्धा ये मेघाः सुस्वरा: स्वादुसंस्थिताः। __ मधरोदकाश्च ये मेघा जलाय! जलदास्तथा ।।।
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