________________
90
भद्रबाहुसंहिता
शब्द स पक्षियों को आक्रान्त करे तो अशुभकारी सन्ध्या होती है । सन्ध्या काल में भन्द पवन के प्रवाह से हिलते हुए पलाश अथवा मधुर शब्द करते हुए विहंग और मग निनाद करते हों तो सन्ध्या पूज्य होती है। सन्ध्या काल में दण्ड, तडित, मत्स्य, मंडल, परिवेय, इन्द्रधनुष, ऐरावत और सूर्य की किरणें इन सबका स्निग्ध होना शीघ्र ही वर्षा को लाता है । टूटी-फूटी, क्षीण, विश्वस्त, विकराल, युटिल, बाईं ओर को झुकी हुई छोटी-छोटी और मलिन सूर्यकिरणे सन्ध्या काल में हों तो उपद्रव या युद्ध होने की सूचना समझनी चाहिए। उक्त प्रकार की सन्ध्या वर्षावरोधक होती है। अन्धकारविहीन आकाश में सर्य की किरणों का निर्मल, प्रसन्न, सीधा और प्रदक्षिणा के आकार में भ्रमण करना संसार के मंगल का कारण है । यदि सूर्यरश्मियां आदि, मध्य और अन्तगामी होकर निवानी, सरल, अखण्डित और श्वेत हो तो वर्षा होती है । कृष्ण, गीत, कपि, रन्न, हरित आदि विभिन्न वर्गों की गिरणे आकाश में व्याप्त हो . लार्य तो जच्छो अपो होती है तथा एक सप्ताह समा भय भी बना रहता है। यदि माया समय गर्य की किरणें तान रंग की हों तो सेनापति की मत्यु, पीले और लाल रंग के समान हो तो सनापति को दुःख, हरे रंग की होने से पशु और धान्य का नाश, धूम्न वर्ण की होने से गायों का नाश, मंजीठ को समान आभा और रंगदार होने से शस्त्र व अग्निभय, पीत हों तो पवन के साथ वर्मा, भस्म के समान होने से अनावृष्टि और मिश्रित एवं करमाप रंग होने से वृष्टि का क्षीण भाव होता है । सन्ध्याकालीन धून दुपहिया के फूल और अंजन के चूर्ण के समान काली होकर जब सूर्य के सामने आती है, तब मनुःय सैकड़ों प्रकार व गोगा रो पीडिस होता है। यदि सन्ध्या काल में राय की किरणे वित रंग की हों तो मानव का भ्युदय और उसी शान्ति सूचित होती है । यदि सूर्य की किरणे गन्ध्या समय जल और पवा से मिलकर दण्ड के समान हो जाये, तो यह दण्ड
हलाता है । अब यह दण्ड विदिशा शा में स्थित होता है तो राजाओं में लिए और जब दिशाओं में स्थित होता है तो द्विजातियों के लिए अनिष्टकारी है। दिन निकालने में पहले और मध्य सन्धि में जो दण्ड दिखलाई दे तो शस्वभय और रोगभय करने वाला होता है, शुक्वादि वर्ण का हो तो ब्राह्मणों को काटकारक, सयदायक और अविनाश करने वाला होता है। ___आकाश में सूर्य के हकने वाले दही के समान किनारेदार नीले मेघ को अघ्रतरू कहत हैं । यह नील रंग का मेघ यदि नीचे की ओर मुख किये हुए मालूम पड़े को अधिक वर्षा करता है । अतर शत्रु के ऊपर का नाम गण करने वाले राजा के पोर-पछि सलकर अकस्मान् शान्त हो जाय तो युवराज और मन्त्री का नाश .. होता है।