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भद्रबाहुसंहिता
उत्तर दिशा की सन्ध्या राजा के लिए जयसूचक है और दक्षिण दिशा की सन्ध्या पराजयसूचक होती है ।पूर्व दिशा की सन्ध्या क्षेमकुशलसूचक और पश्चिम दिशा की सन्ध्या भयंकर होती है ।।7।
आग्नेयो अग्निमाख्याति नैऋती राष्ट्रनाशिनी ।
वायव्या प्रावृष' हन्यात् ईशानी च शुभावहा ॥8॥ अग्नि कोण को सन्ध्या अग्निभय कारक, नैऋत्य दिशा की सन्ध्या देश का नाश करने वाली, वायु कोण की सन्ध्या वर्षा की हानिकारक एवं ईशान कोण की सन्ध्या शुभ होती है ॥४॥
एवं सम्पत्करायेषु नक्षत्रेष्वपि निदिशेत्।
जयं सा कुरुते सन्ध्या साधकेषु समुत्थिता ॥१॥ इसी प्रकार गम्पत्ति का लाभ आदि कराने वाल नक्षत्रों में भी निर्देश करना चाहिए, इस प्रकार की सन्ध्या साधवः यो जयप्रदा होती है । तात्पर्य यह है कि साधक पुरुष को नक्षत्रों में भी शुभ सन्ध्या का दिवाई देना जबप्रद होता है ।।१।।
उदयास्तमनेऽर्कस्य यान्यनापतो भवेत् ।।
सम्प्रभाणि सरश्मीनि तानि सन्ध्या विनिदिशेत् ।।1।। शयं के उदयास्त समय वादलों पर जो सूर्य की प्रभा पड़ती है, उस प्रभा से बादलों में नाना प्रकार के वर्ण उत्पन्न हो जाते हैं, उसी का नाम राध्या है॥100
अभ्राणां यानि रूपाणि सौम्यानि विकृतानि च ।
सर्वाणि तानि सन्ध्यायां' तथैव प्रतिवारयेत् ||| अध्र अध्याय में जो उनमें अच्छे और बुरे फल निरपित किये गये हैं, उस । सबको इस सन्ध्या अध्याय में भी लागू बार लेना चाहिए || | ||
एवमस्तमने काले या सन्ध्या सर्व उच्यते ।
लक्षणं यत्" तु' सन्ध्यानां शुभं" वा यदि "वाशुभम् ।। 1 218 उपयुक्त सूर्यादय की सन्ध्या के लक्षण और शुभाशुभ फलानुसार अस्त काल
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