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षष्ठोऽध्यायः
राजा' तत्प्रतिरूपैस्तु ज्ञेयान्यभ्राणि सर्वश" ।
तत् सर्व' सफलं' 'विन्द्याच्छुभं वा यदि वाऽशुभम् ॥31॥
यदि राजा को बादल अपने प्रतिरूप - सदृश जान पड़ें तो उनसे शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का फल अवगत करना चाहिए ॥31॥
दरभावित
नाम ठोऽध्यावः ||6||
विवेचन--- आकाश में बादलों के आच्छादित होने से वर्षा, फसल, जय, पराजय, हानि, लाभ आदि के सम्बन्ध में जाना जाता है। यह एक प्रकार का निमित्त है, जो शुभ-अशुभ की सूचना देता है। बादलों की आकृतियाँ अनेक प्रकार की होती हैं । कतिपय आकृतियाँ पशु-पक्षियों के आकार की होती हैं और कतिपय मनुष्य, अस्त्र-शस्त्र एवं गेंद, कुर्सी आदि के आकार की भी । इन समस्त आकृतियों को फल की दृष्टि से शुभ और अशुभ इन दो भागों में विभक्त किया गया है । जो पशु सरल, सीधे और पालतू होते हैं, उनकी आकृति के बादलों का फल शुभ और हिंसक, क्रूर, दुष्ट जंगली जानवरों की आकृति के बादलों का फल निकट होता है। इसी प्रकार सौम्य मनुष्य की आकृति के बादलों का फल शुभ और क्रूर मनुष्यों की आकृति के बादलों का पल निकृष्ट होता है। अस्त्र-शस्त्रों की जाति के बादलों का फल साधारणतया अशुभ होता है। स्निग्ध वर्ण के बादलों का फल उत्तम और रूक्ष वर्ण के बादलों का फल रावंदा निकृष्ट होता है ।
पूर्व दिशा में मेघ गर्जन-तर्जन करते हुए स्थित हो तो उत्तम वर्षा होती है तथा फसल भी उत्तम होती है। उत्तर दिशा में बादल छाये हुए हों तो वर्षा की सुचना देते हैं। दक्षिण और पश्चिम दिशा में बादलों का एकत्र होना वर्षावरोधक होता है। वर्षा का विचार ज्येष्ठ की पूर्णिमा की वर्षा से किया जाता है । यदि ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्र हो और उस दिन बादल आकाश में आच्छादित हों तो साधारण वर्षा आगामी वर्ग में समझनी चाहिए। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र यदि इस दिन हो तो अच्छी वर्षा होने की सूचना जाननी चाहिए | आषाढ़ कृष्ण पक्ष में रोहिणी के चन्द्रमा योग हो और उस दिन आकाश में पूर्व दिशा की ओर मेघ सुन्दर, सौम्य आकृति में स्थित हो तो आगामी वर्ष में सभी दिशाएं शान्त रहती है, पक्षीगण या मृगगण मनोहर शब्द करते हुए आनन्द से निवास करते हैं, भूमि सुन्दर दिखलाई पड़ती है और धन-धान्य की उत्पत्ति अच्छी होती
1. नां भू० C. 1 2 निति 1 3
5. सर्वमनं मरु C 16. बूयात् मु.. B. C
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