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भद्रबाहुसंहिता
चमय तो जल-वष्टि नहीं होती ।। 1312
रक्तारक्तेषु चानेषु हरिताहरितेषु च।
नोलानीलेषु वा स्निग्धा वर्षन्तेऽनिष्टयोनिषु।।4 बन-भरवत, हरित-अहरित और नील-अनील बादलों में यदि स्निग्धा बिजली चमकती है, तो उक्त प्रकार के बादलों के अनिष्टसूचक होने पर भी जल की वर्षा अवश्य होती है || 140
अथ नीलाश्च पीताश्च रक्ताः श्वेताश्च विद्युतः।
एतां श्वेतां पतत्यूर्व विधुदुदकसंप्लवम् ॥15॥ अत्र बिजली के वर्षों का निरूपण करते हैं -नील, पीत, रक्त और श्वेत वर्ण की बिजलियों में में श्वेत रंग की बिजली ऊपर गिरे तो पृथ्वी पर जल ही मन व रगता है. ---बी जल गेग्लाविक जाती है :
वैश्वानरपथे विद्यत् श्वेता रूक्षा चरेद् यतः ।
विन्यात् तदाऽशनिवर्ष रक्तायामनितो भयम् ।।16।। ग्यास र T अर्थात् अग्निकोण में उत्पन्न हुई अवना और रक्षा नाम भी विजयि वियत् काही जाती हैं । ये अशनि बुष्टि करती हैं । रक्तवर्ण भी बिजली अग्नि का भग करती हैं ॥16
यदा श्वेता भ्रवृक्षस्य विद्युच्छिर सि संचरेत् ।
अथ वा गृह्योर्मध्ये वातवर्ष सृजेन्महत् ।।17।। यदि एवेत रंग की विजनी वृक्ष के ऊपर गिरे अथवा दो गृहों के मध्य से होकर गिरे तो रोज वायु सहित जल की वर्षा होती है ।।1711
अथ चन्द्राद विनिष्क्रम्य विद्युन्मंडलसंस्थिता।
श्वेताऽभा प्रविशेदक विन्द्यादुदकसंप्लवम् ॥18॥ यदि नन्द्रमण्य गे निपालमा २ प्रधेस मेघ युक्त बिजली सूर्यमण्डल में प्रवेश नारे नो से अधिक वर्गानिका समझनी चाहिए ।। 1 8।।
अथ सूर्याद् विनिष्क्रम्य रक्ता समलिना भवेत् ।
प्रविश्य सोमं वा तस्य तत्र' वृष्टिर्भयंकरा ॥19 यदि सूर्यमण्डल में निकलकर रक्त वर्ण की भलिन विद्यत चन्द्रमण्डल में प्रवेश
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