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भद्रबाहुसंहिता
से चन्द्रमा के परिवेष से किया जाता है और कृषि सम्बन्धी विचार के लिए सूर्य परिवेष का अवलम्बन लिया जाता है। यद्यपि दोनों ही परिवेष उभय प्रकार के फल की सूचना देते हैं, फिर भी विशेष विचार के लिए पृथक परिवेष को ही लेना चाहिए।
सन्दरी के परिव व रंग का हो और उसमें अधिक से अधिक दो मण्डल हों तो लगातार सात दिनों तक वर्षा की सूचना समझनी चाहिए। इस प्रकार का परिवेष फसल की उत्तमता की सूचना भी देता है । वर्षा ऋतु में समय पर पर्षा होती है । आश्विन और कात्तिक में भी बर्षा होने से धान्य की उत्पत्ति अच्छी होती है। यदि उक्त प्रकार के परिवेष के समय चन्द्रमा का रंग श्वेत वर्ण हो तो माघ मारा में भी बर्षा होने की सूचना समझ लेनी चाहिए । कदाचित चन्द्रमा का रंग नीला या काला दिखलाई पड़े तो निश्चय से अच्छी वर्षा होने की सूचना समझनी चाहिए । चन्द्रमा के नीन्ने या काले होने में मुभिक्ष भी होता है । गेहूं, घान और गुड़ की फसल अच्छी उत्पन्न होती है। काले रंग के चन्द्रमा के होने से आश्विन भारा में वर्षा का दस दिनों तक अवरोध रहता है, जिससे धान की फसल में कमी आती है। चन्द्रमा हरित वर्ण का मालग हो और परिवेष दो मंडलों के घेरे में हो तो वर्पा सामान्य ही होती है, पर फसल अच्छी ही उत्पन्न होती है। चन्द्रमा जिस समय रोहिणी नक्षत्र के नध्य में स्थित हो, उसी समय बिचित्र वर्ण का परिवेग रात्रि के मध्य भाग में दिखलाई पड़े तो इस प्रकार के परिवेप द्वारा देश की उन्नति की सूचना समझनी चाहिए। देश में धन-धान्य की उत्पत्ति' प्रचुर रूप में होती है, वो भी समय पर होती है तथा देश में सर्वत्र मुभिक्ष व्याप्त रहता है। चन्द्रमा का परियोग रक्त वर्ण का दिखलाई गई और चन्द्रमा दा रंग श्वेत या कपोत हो तथा एक ही मंडल वाला परिवेष हो तो वी आपाद में नहीं होती, श्रावण, भाद्रपद में अच्छी वर्मा और अश्विग में वर्ग का अभाव ही रहता है। फसल भी उत्पन्न नहीं होती। यदि आपाह मास में चन्द्रमा का परिवेप सध्या गमय ही दिखलाई पड़े तो श्रावण में धूप होती है, वर्षा का अभाव रहता है। जापाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को सन्ध्या काल में चन्द्रमा का परिचय दो मंडलों में दिवलाई पडे तो वर्षा का अभाव, एक मंडल में रक्त वर्ण का परिवेष दिग्दलाई दे तो साधारण वर्श, एक मंडल में ही श्वेत वर्ण और हरित वर्ण मिश्रित परिवेष दिखलाई दे तो प्रचुर बर्षा, तीन मंडल में परिवेष दिखलाई दे तो दुकाल, वर्धा का अभाव और चार मंडल में परिवेष दिसला रहे तो फसल में कमी और दुनिश्श, वर्मा तु गः चारों महीनों अपवष्टि और अन्म वी बाभी होती है । आगाह कृष्ण
चन्द्रोदय होत हरित भारत मिति परिवेष दिनलाई पई ना पूरा ना होती है । तृतीया को चन्द्रोदय के तीन घड़ी बाद यदि