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भद्रबाहुसंहिता
यह है कि जल की वर्षा न होकर वायु तेज चलती है, जिससे फूल की वर्षा दिखलाई पड़ती है 119|
यदा तु सोममुदितं परिवेषो रुणद्धि हि ।
जीमूतवर्णस्निग्धश्च महामेघस्तदा भवेत् ॥10॥ यदि चन्द्रमा का परिवेष उदयप्राप्त चन्द्रमा को अवरुद्ध करता है-~-ठक लेता है और वह मेघ के समान तथा स्निग्ध हो तो उत्तम वृष्टि होती है । 10॥
अभ्युन्नतो यदा श्वेतो रूक्षः सन्ध्यानिशाकरः।
अचिरेणैव कालेन राष्ट्र चौरविलुप्यते ॥1॥ उदय होना हुआ सन्ध्या के समय का चन्द्रमा यदि श्वेत और रूक्ष वर्ण के । परिवेप से युति हो तो देश को चोरों के उपद्रव का भग होता है 11 ||
चन्द्रस्य परिवेषस्तु सर्वरात्रं यदा भवत् ।
शस्त्रं जनक्षयं चैव तस्मिन् देशे विनिदिशेत् ॥12॥ यदि सारी रात --उदय में अम्त तमः चन्द्रमा वा परिवेप रहे तो इस प्रदेश में परस्पर गलह-मारपीट और जनता का नाश सूचित होता है ।। 1 211
भास्करं तु यदा रूक्ष: परिवेषो रुणद्धि हि।
तदा मरणमाख्याति नागरस्य महीपतेः ।।13।। यदि सूर्य का परियेप रूक्ष हो और वह उस ढक ले तो उसके द्वारा नागरिक एवं प्रशासकों की मृत्यु की गूचना मिलती है ।।1 311
आदित्यपरिवेषस्तु यदा सर्वदिनं भवेत् ।
क्षुभयं जनमारिञ्च शस्त्रकोपं च निदिशेत् ॥14॥ मूर्य का परिवेष मारे दिन उदय मे अम्त तक बना रहे तो क्षुधा का भय, मनुष्यों का महामारी द्वारा मरण एवं युद्ध का प्रकोप होता है | 141
हरते सर्वसमस्यानामोतिर्भवति दारुणा।
वृक्षगुल्मलतानां च वर्तनीनां तथैव च ॥15॥ उक्त प्रसार के पग्वेिप से सभी प्रकार धान्यों का नाश, घोर ईति-भीति और बा, मो-जुर मटो, नताशों तथा पश्थियों को हानि पहुँचती है ।। 1 51
1. सापरस्य आ० । 2. नरिमन्नत्गानदर्शने म..।