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भद्रबाहुसंहिता
वर्द्धपानध्वजाकारा: पताकामत्स्यकर्मवत । वाजिवारणरूपाश्च शंखवादित्रछत्रवत् ॥3211 'सिंहासन रथाकारा रूपपिण्डव्यवस्थिता.।
रूरतः प्रशस्यन्ते सुखमुल्का: समाहिताः ।।33॥ उपर्णात नक्षणयुक्त उल्या महान् मय उत्पन्न करती है। यदि अष्टापद के रामानमा दटिगोचर हो तो छह मास में युगात की सुचिका समझनी चाहिए। यदि म...श्रीवा, चन्द्र, मुयं, नन्द्यावतं, कलश, वृद्धिगत होने वाले ध्वज, पताका, 11. FI, अपच, हरनी, अग्न, वादिन, स्त्र, सिंहासन, २श्च और चांदी के fry; गोलाकार ए और आारों में उला गिरे तो उग उत्तभ अवगत करना चाहिए या उसका सभी को गुख देनवाली है 1130-3311
नक्षत्राणि 'विमचन्त्यः स्निग्धाः प्रत्युत्तमाः शुभाः। सुष्टि क्षेममारोग्यं शस्यसम्पत्तिस्त्तमाः ॥3॥
:: नवी कोर ग ग करने वाली स्निग्ध और उत्तम शुभ नET IT तो गुवति, योम, आगाम्य और धान्य की उत्पत्ति बाली .1 341
सोमो राहश्च शुक्रश्च केतभोमश्च "यायिनः ।
बृहस्पतिर्बुधः सूर्यः सारिश्चापोह नागरा: ॥35॥ मार्गी शुद्ध । लिग अन्य देश या नृपति पर आक्रमण करनेवाले व्यक्ति के [ , , , मन और मंगा था. आवय होता है और स्थायी१३|या या देश, नाति या ari यनित वागत ने लि। बृहस्पति, बुध,
न का बल पम होता है। इन ग्रहा क बनावल पर ग यायी और l i. IF IT ना पाहिए ।।35।।
हन्युमध्यन या उल्का ग्रहाणां नाम विद्युता।
निर्धाता सधम्रा वा तव विद्यादि फलम् ॥361 जा ....TH भाग ग्रह शाह --प्रताडित कर, वह वियत संसक है। ..: :TI: ||| IIT मार धूम गहा हो तो न निम्न प्रकार होता .: ।।3111
[...It : IAस्याग .. ३..। 2. श्यन्त भ.. । 3. स्वं स्वं 4.A . 1.। 4 पुनम आ॥ 5. प्रत्युना .D. I 6. यो पिन: "... , 11|गा ! ( 7 पोर • I A , सार . ). 1 8-9. श्चा चलय पर: ३ : । 10 मा.. ।
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