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प्रथमोऽध्यायः
उतना अंश जितने में किसी एक राशि का उदय होता है, लग्न कहलाता है । अहोरात्र में बारह राशियों का उदय होता है, इसलिए एक दिन-रात म बारह लग्न मानी जाती हैं | लग्न निकालने की क्रिया गणित द्वारा की जाती है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन मे लग्न राशियाँ हैं ।
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मेष - पुरुषजाति, चर संज्ञक, अग्नितत्त्व, सतपीतवर्ण, पित्तप्रकृति, पूर्वदिशा की स्वामिनी और पृष्ठोदयी है।
वृष -- स्त्रीराशि स्थिरसंशक भूमितत्त्व, शीतल स्वभाव, वातप्रकृति, श्वेतaj, वियमोदघी और दक्षिण की स्वागिनी है।
मिथुन - पश्चिम की स्वामिनी, वायुतत्त्व, हरितवर्ण, गुरुराशि, द्विस्वभाव, उष्ण और दिनवली है ।
कर्क-चर, स्त्रीजाति, सौम्य, कफ प्रकृति, जनचारी, समोदयी, रात्रित्रली और उत्तर दिशा की स्वामिनी है।
सिंह - पुरुषजाति, स्थिरसंशक अदितच्च दिवानी, पित्तप्रकृति पृष्टशरीर, भ्रमणप्रिय और पूर्व की स्वामिनी है।
कन्या - पिंगलवर्ण, स्त्री जाति, द्विस्वभाव, दक्षिण की स्वागिवी, सत्रिवली, वायु-पित्त प्रकृति और पृथ्वीतत्व है ।
तुला - पुरुष, चर, वायुतस्त्र, पश्चिम की स्वामिनी, श्यामवर्ण शीर्णोदयी, दिनवली और क्रूरस्वभाव है
वृश्चिक - स्थिर, शुभ्रवर्ग, स्त्रीजाति, जननस्त्र, उत्तर दिशा की स्वामिनी, कफप्रकृति, रात्रिवली और ही है ।
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धनु -पुरुष, कांचनवर्ण, द्विस्वभाव क्रूर पिनप्रवृति, दिनवली, अग्नितत्व और पूर्व की स्वामिनी है ।
मकर-चर, स्त्री, पृथ्वीतस्व, वातप्रकृति, पिंगलवणं, रात्रिवली, उच्चाभिलाषी और दक्षिण की स्वामिनी है ।
कुम्भ -- पुरुष, स्थिर, वायुतत्त्व, विचित्रवर्ण, श्रीपदय, अर्द्धजल, त्रिदोष प्रकृति और दिनबली है ।
मीन – द्विस्वभाव, स्त्रीजाति, कफप्रकृति, भलनस्य, राभिवली, पिंगलवर्ण और उत्तर की स्वामिनी है ।
इन लग्नों का जैसा स्वरूप बतलाया गया है, उन लग्नों में उत्पन्न हुए व्यक्तियों का वैसा ही स्वभाव होता है ।