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(४) उपचार के उपयोग में आने वाले रत्नों के दो प्रकार
Two types of Crystals used in Healing (क) चक्र सक्रियक के तौर पर-- As Chakral Activator
अध्याय २८ के क्रम संख्या २ (ग) में इसका वर्णन किया है, इसका सन्दर्भ वहां से ग्रहण करिए। यह मान के शरीर की ऊर्जा का स्तर बढ़ाने के काम आता है। इस उद्देश्य के लिए इसको उपचारक अपने हाथ चक्र पर रखता है। सामान्यतः यह स्वच्छ पारदर्शी स्फटिक मणि का होता है, किन्तु विशेष परिस्थिति में यह अन्य उपचार के काम में आने वाले अन्य रंगीन रत्नों का भी हो सकता है। (ख) लेसर रत्न- As Laser Crystal
यह स्वच्छ पारदर्शी स्फटिक मणि का है। वास्तव में यह लेसर नहीं है, किन्तु यह लम्बा पतले स्फटिक मणि के रत्न होने के कारण इस नाम से सम्बोधित कर दिया है, क्योंकि इसके नोकदार सिरा होता है। किसी लेसर रत्न में दोनों तरफ नोकदार सिरे होते हैं। इसके द्वारा जो प्राण-ऊर्जा बाहर निकलती है, वह केन्द्रित अर्थात इकट्ठी होकर निकलती है।
इसका उपयोग स्वच्छीकरण एवम् ऊर्जीकरण- दोनों प्रकार से हो सकता है। जब इसका उपयोग स्वच्छ करने के लिए किया जाता है तो जिस प्रकार एक उच्च दबाव वाले पानी से फर्श धोया जाता है, उस प्रकार का प्रभाव होता है। लेसर से इकट्ठी केन्द्रित होकर ऊर्जा स्वच्छीकरण को अधिक प्रभावी बनाती है। लेसर रत्न जहां तक सम्भव हो, साढ़े पांच इंच लम्बा होना चाहिए ताकि हैण्डिल करने में सुगम हो और उपचारक को कम से कम संक्रमण हो। इसका यह भी तात्पर्य नहीं है कि कम लम्बे लेसर रत्न को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। इसको चित्र ५.१५ में दिखाया गया है।
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